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________________ ८. गिरि-गहर में गूंजतो, मनु जब्बर बब्बर सीह, गाढ़ माढ़ आषाढ़ में, अंबर में गरज्यो मीह रे । धणणाट नगारां धींह रे, गणिवर - मुख घोष अबीह रे, है सुधा-स्राविणी जीह रे, सद्गुरु निष्काम निरीह रे ।। ६. 'बीस विहरमाण" सासता, गुरु सुमरै कर विस्तार, पाछै आछै भाव स्यूं, विभु वरण साध्वाचार रे । जैनागम रै अनुसार रे, तेरापथ रो आधार रे, दरसावै उचित प्रकार रे, भीतर बाहर इकसार रे ।। तेरापंथ प्रभो ! वज्रासन में बैठ बबर्ची घन गुंजायो रे । सुभागी भवि-मन भायो रे ।। १०. तेरा श्रमण उपासक तेरा लख सेवक तुक गायो रे । सुणतां ही गुरुदेव अनोखो अर्थ लगायो रे ।। ११. इक आचार एक आचारज एक विचार सुहायो रे । प्रबल एकता सबल संगठन रोब जमायो रे ।। १२. शुभ बेळां पार्वत- प्रदेश में रोप्यो भिक्षू पायो रे । उत्तरवर्ती आचारज अतिमात्र दृढायो रे ।। १३. अति ऊंडी अध्यात्म भूमि पर अनुपम महल बणायो रे । श्रम सेवा समता रो सक्षम क्षेत्र सझायो रे ।। १४. संयम धर्म असंयम अधरम सही मार्ग सुलझायो रे । निश्चय अरु व्यवहार उभय नय स्यूं समझायो रे ।। १५. लोकोत्तर लौकिक धर्मां रो पृथक विवेक बतायो रे । अपणो- अपणो स्थान सदा मिश्रण असुहायो रे ।। १६. निज दुर्बलता ढांकण पर निंदा रो पथ अपणायो रे । दयापात्र है बै करुणा स्यूं हृदय भरायो रे ।। १. देखें प. १ सं. २६ २. लय : पनजी! मूंदै बोल १४२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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