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२६. चहल-पहल-सी लगी, अडीकै लोक खड्या चित चावै रे।
छट्ठी ढाळे 'तुलसी' कालू-कलना अलख लखावै रे।।
ढाळः ७.
दोहा १. चोथ प्रभाते माघ बिद, मालव-जनता साथ।
समवसऱ्या पुर जावरे, तेरापथ रा तात।। २. गळी-गळी बाजार में, खड्या हजारां लोक। • उत्कंधर वन्दै सुघड़, दे दे पांवांधोक।। ३. नहिं आवै संपर्क में, कीन्हो प्रखर उपाय।
विपरिणाम पेख्यो प्रगट, कालू-पुण्य-पसाय।। ४. महावीर मुख स्यूं सुणी, गाथा-विसरण-हेत।
रौहिणेय आयासवत, इतर-पक्ष-संकेत।। ५. जठै रुकावट जोर स्यूं, निरखण द्विगुणित राग।
जिनरिख-जिनपालित' प्रवर, देख्यो दक्षिण बाग।।
मन-मोहनगारो म्हारो नाथजी।
६. प्रथम याम में ही कियो, सखे! मध्य नगर परवेश,
भाल भानवत भळकतो, सिर सोहै सिततम केश रे। दीपै अति धवलित वेश रे, दिल उज्ज्वल अमल अशेष रे, निज निर्मल चरण निवेश रे, मनु जग-तारक जिन एष रे।। ७. मत्त मयंगल मलपता, मनु मंजुल चाल मराल,
आया भर बाजार में, इक धर्मशाल सविशाल रे। चोगान पडै चोसाल रे, तिण बिच सिंहासन ढाळ रे, प्रारंभ्यो देव दयाल रे, व्याख्यानामृत वर्षाळ रे।।
१. देखें प्रथम खण्ड, प. १ सं. ७४ २. देखें प्रथम खण्ड, पं. १ सं. ८४ । ३. लय : मुनिवर विहरण पांगुऱ्या सखि!
उ.५, ढा.६,७ / १४१