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१५. आखू रो रस चाखू बिल्ली, हिल्ली पकड़ण धावै रे। ____ करुणा-भावे नां फरमावै, तेरापंथी आवै रे।। १६. गाडी-हेलै पट्यो डावड़ो, काल-गाल में जावै रे।
करुणा-भावे पाप बतावै, तेरापंथी आवै रे।। १७. हीन-दीन दोहग दुखिया नै, जो कोइ दान दिरावै रे।
तिण में पाप थाप-हित पुर में तेरापंथी आवै रे।। १८. कूप खणावै बाग बणावै, प्याऊ में जल पावै रे।
तिण में धर्म नहीं समझावै, तेरापंथी आवै रे।। १६. मात-पिता री सारी सेवा, पूत सपूत कहावै रे।
ओ पिण नहीं मुगत-पथ, कहता तेरापंथी आवै रे।। २०. हिंदू-मुस्लिम जैन-अजैनी, राज-प्रजा इक भावै रे।
घट-घट अणघट घाट घड्यो इक, तेरापंथी आवै रे।। २१. भेड़-चाल दुनिया री देखो, अन्तर भेद न पावै रे। ___'अंबर टूट पड्यो है" भागो, तेरापंथी आवै रे।। २२. सिंघ-बाघ बिन आग लाग बिन, नाग जाग बिन खावै रे।
सारै पुर में शोर मच्यो इक, तेरापंथी आवै रे।। २३. त्याग प्रमोद प्रमादी मानव, घोर घृणा फेलावै रे।
ओरां री अपकृति-हित दुष्कृति, क्रूर-प्रकृति बण ज्यावै रे।। २४. गुरुता नहीं साधुता मानवता भी सुण शरमावै रे।
ऊलजलूल अनर्गल आक्षेपां री झड़ी लगावै रे ।। २५. सुणी पूज्य जब सारी बातां, सम्यग रूप गहावै रे।
जो आगूंच प्रचार करै, उपकारी क्यूं न कहावै रे।। २६. अप्रत्याशित अद्भुत कृति पर, दुन्दुभि देव बजावै रे।
त्यूं आगूंच प्रचार करै, उपकारी क्यूं न कहावै रे।। २७. अपणी अक्षमता रो परिचय पर-निन्दा परखावै रे।
स्वयं सिकारै पर-क्षमता, उपकारी क्यूं न कहावै रे।। २८. घर का कागज घर का पैसा, घर की बगत बितावै रे। __ औरां रो परचार करै, उपकारी क्यूं न कहावै रे।।
१. देखें प. १ सं. २८
१४० / कालूयशोविलास-२