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________________ १४. आखिर पुर-बाहिर चल आया, १३. कोई अपणो स्थान न धामै, पूरी सफर समूचै गामै । खांधां ऊपर भार ।। रजपूतां रै घर ठहराया। भगत बण्यो परिवार ।। निकाली है बरसां री । १५. मिली रेस जैन्यां री सारी, खुणस सुण मन हास्य अपार ।। , १६. थळी देश में पूज्य जवारी' की महसूस असुविधा भारी । तिण रो ओ प्रतिकार ।। १७. अन्य त्रपास्पद असहज बातां, सुणतां लागै दिल आघातां । बढ़े व्यर्थ तकरार ।। १८. द्वैधीभाव करण -हित धाया, थळी देश में प्रत्युत पाया । असफलता साकार ।। फैलाकर । व्यवहार ? ।। १८. अपणी भूल रोष ओरां पर, कादै अनुचित भ्रम ओ कोई २०. गयो बगत बा बीती माया, अंतर पश्चिम- पूरब - छाया । अब कटुता बेकार ।। २१. कुण ओ समय रुकुण हां आपां ? देश काल स्थिति क्यूं नहिं मापां? समता रस संचार ।। २२. संत सदा अनिकेत कहावै, जठै जग्यां सहज्यां मिल ज्यावै । बठै धर्म की बार ।। २३. जैनेतर विस्मित- सा रहग्या, नहिं कहणै री बातां कहग्या । १. जवाहरलालजी १३८ / कालूयशोविलास-२ समझ्या समझणहार ।। २४. अब तो सारा ही शरमाया, झूठी बहकावट में आया । खोयो अवसर सार ।। २५. एक दिवस ही प्रवचन कीधो, पूज्य पाधरो मारग लीधो । पंचमि ढाळ उदार ।। ढाळः ६. दोहा १. मन्दसौर प्रतिपक्ष रो, मंद शोर लख स्वाम । दो वासर वर करुणया, रह्या पुण्य पद थाम ।। -
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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