________________
ढाळः ५.
दोहा १. स्वामी छोटी 'सादड़ी', पो. सुद तीज पधार।
सारो पुर पावन कियो, जय-जय जगदाधार।। २. हो 'बाघाणे' आविया, 'निमच छावणी' नाथ।
मालव-श्रावक-संघ री, बड़ी व्यवस्था साथ ।। ३. 'निमच छावणी' स्यूं शुरू, ‘महू छावणी' अन्त।
सड़क गृहांगणवत पड़ी, संत-सुखद पद-पन्थ ।। ४. 'निमच' शहर है सामनै, जैनी बसै सजोश।
स्वामी पादार्पण करै, वरै धर्म परिपोष।।
'मुनिप रो मालव-देश विहार। जन-मन-भाणो हर्ष-बधाणो, समता को संचार।।
५. मालव-भूमी है उपजाऊ, खेत-खळां में धान अमाऊ।
विविध वस्तु-भण्डार ।। ६. कहिं काळी-पीळी माटी है, ढेलां री धरती काठी है।
पाणी रो पेसार ।। ७. सी-सर्दी गर्मी-वर्मी रो, नहिं भय भय इक दुष्कर्मी रो।
है खटमल खूखार ।। ८. धूप नहीं लू झाळ न झाले, नहि दुष्काल भयंकरता लै।
सब ऋतु में सुखकार ।। निमच शहर धुर नाथ पधारै, जाणक जन-जन भाग्य जगारै।
जय-जय री धुंकार ।। १०. सुंदर है बाजार सुहाणो, जैनी बसती में अब जाणो।
देखै सब दृग डार।। ११. ऊंची इमारतां रंगीली, भव्य झरोखां स्यूं भड़कीली।
सझी
सुरम्याकार।। १२. लोक खड़ा है अगल-बगल में, निरखी पलक गिरावै पल में।
करै न को मनुहार।। १. लय : सभापति हमें मिले बुधवान
उ.५, ढा.५ / १३७