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________________ श्रावक शुभ सेवा सारे, मन मोद बहे इकधारे जी ।। गुरु मालव देश पधारे। ६. तिथि तेरस पो. महिनां री, शुक्लेतर पख सुखकारी जी । शुभ ग्रह-नक्षत्र निहारी, पुळ-वेळा सुंदर सारी जी ।। १०. धुर ग्राम 'लूणदै' आया, ' बोही' झड़ बरसाया जी । गुरुदरस रावजी पाया, निज कंवर भंवर सह ल्याया जी ।। ११. बो शहर सादड़ी सोहै, पादार्पण भवि-मन मोह जी । प्रतिपक्षी जनता जो है, अति द्वेषभाव अनपोहै जी ।। १२. धार्मिक चर्चा हित धाया, अनपेक्षित प्रश्न उठाया जी । समता-रस स्यूं समझाया, आग्रह री अद्भुत माया जी ।। १३. रहि रात प्रभात विहारी, है पूज्य परम उपकारी जी । सादड़ी नगर-अधिकारी, भेट्या गुरु दिव्य-दिदारी जी ।। १४. सोळह उमरावा जाणो, सादड़ी प्रधान ठिकाणो जी । पद 'राजरणा' पहचाणो, बोलै दिल भक्ति भराणो जी ।। १५. कांई आया पधराया? बस एक दिवस पद ठाया जी । म्है दरसण भी नहिं पाया, सुधरै कस्यान आ काया जी ? १६. मारग में पूज्य विराजे, उपदेश उदित आवाजे जी । श्रुति राजरणाजी साझे, पीयूष-भाव अंदाजे जी ।। १७. दस मिनट देशना दीन्ही, वेराग्य - भावना - भीनी जी । तेरापथ-पद्धति झीनी, परखाई सद्गुण - पीनी जी ।। १८. सुण राजरणाजी बोलै, सुणतां ही हिवड़ो डोलै जी । नहिं तेरापथ रै तोलै, चहे पन्थ अनेक टटोलै जी ।। १६. इण पथ री अनुपम एकी, आलम री एकी छेकी जी। ओरां में जो अविवेकी, सिर फोड़ गमावै शेखी जी ।।. २०. म्है देख्या घणा पवाड़ा, ग्रहि भेख करै भसवाड़ा जी । चेला-हित तोड़ा-फाड़ा, बंध्योड़ा कोरा बाड़ा जी ।। २१. है ओ ही पंथ निराळो, नहिं थानक चेलां चाळो जी । आचारज एक रुखाळो, सारा साधूपण पाळो जी ।। २२. मारग में मैं श्रमदायी, गुरु करुणा-दृष्टि दिखाई जी । पण इण परिसम स्यूं त्रायी! म्हांरा पातक प्रलयायी जी ।। २३. अनुरंजित निज पुर हाले, गुरु अपणो पन्थ निभाले जी । संक्षिप्त चउत्थी ढाळे 'तुलसी' बै स्मृतियां साले जी ।। १३६ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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