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२२. दो वासर रहि नगर में रे, दो दिन बाहिर बाग।
कानोड़-रावजी पूज्य रा रे, भेट्या चरण सुभाग हो।। २३. उपदेशामृत श्रुति सुण्यो रे, मुनिवर रो आचार।
अति इचरज मन अनुभव्यो रे, जय-जय जग-आधार! हो।। २४. आ पंचम उल्लास री रे, तीजी ढाळ रसाल।
अब आगामी ल्यो सुणो रे, मालव-हाल विशाल हो।।
ढाळः ४.
दोहा १. रायचन्द जयजश गणी, तेरापंथ-भदंत।
सर्वप्रथम पावन कियो, प्रमुदित मालव-पंथ ।। २. उगणीसै वर विक्रमी, एकादश री साल।
पाछे अणफर्यो रह्यो, मालव मालोमाल।। ३. विहरण श्रमणी-श्रमण रो, यद्यपि हुयो सुभाव।
तो भी उडुगण स्यूं अतुल, उडुपति-प्रभा-प्रभाव।। ४. श्रमण विहार हुवै सतत, खाळ-प्रवाह सगोत।
सुगुरु सकृत पादार्पणं, त्रिस्रोता रो स्रोत।। ५. लाखां दीया झगमगै, ले बाती इकलोत।
सारां री सारै गरज, एक तपन-उद्योत।। ६. सदा मुनीम गुमासता, देखै कारोबार।
पर मालिक रो देखणो, कभी-कभी अनिवार।। ७. अति लंबी अंतिम सफर, तीरथ-युत तीर्थेश।
जग-तारण त्रायी करै, मालव-देश-प्रवेश ।।
'गुरु मालव देश पधारै।
शरणागत काज समारै जी, गुरु मालव देश पधारै। निजरां निज बाग निहारै जी, गुरु मालव देश पधारै ।।
८. शिशु तरुण स्थविर मुनि लारे, परिवरिया बहु परिवारे जी।।
गुरु मालव देश पधारै। २. लय : सरणाट कूचामण बहग्यो
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