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६. च्यार दिवस लागी चहल, श्रमण-सती मंडाण।
शीतकाल में है सदा, नहिं अद्भुत अहनाण।।
भाखर री धरती में, गणि-पंचानन गंजै जी राज। जन-उद्धार कृती में, आतम-शक्ति प्रयूंजै जी राज।।
१०. राजनगर भैक्षवगण-राया, आया सह परिवार।
शीतकाल रो काम समेटण, मेटण मन रो भार हो।। ११. मालव-देश-निवासी मानव, अब नहिं छोड़े लार।
मिलजुल आवै विनय सुणावै, हार्दिक भाव उभार हो।। १२. वृद्ध अवस्था नाथ! आपरी, पेंडो पिण भरपूर।
सब जाणै पर मन नहिं माने, कीजै हुकम हजूर! हो।। १३. शासनमोड़ कानोड़ रो अब, मार्ग कियो मंजूर।
गुरु-वच-गर्जारव सुण हरख्या, मालव-हृदय-मयूर हो।। १४. श्रमण-साध्वियां सैकड़ां हैं, पूज्य-चरण लयलीन।
सहज सारणा-वारणा रे, साझै स्वाम संगीन हो।। १५. स्याबाशी-ओलम्भड़ा रे, जथाजोग सीखाण।
भाखै सह साखै गुणी रे, राखै गणमंडाण हो।। १६. भाव भोड़ा भेटणा रे, कला-पूर्ण उपकर्ण।
श्रमण-सत्यां रा स्वीकऱ्या रे, वर्णन मिलै न वर्ण हो।। १७. वस्त्र-पात्र उपकरण रो रे, निज कर-वितरण खास।
कियो श्रमण-श्रमण्यां प्रते रे, सारा मन हुल्लास हो।। १८. किण-किण रा पावस कठै रे, आगामी अनुसंध।
सूप्या सबनै चोखळा रे, ओ प्रच्छन्न प्रबंध हो।। १६. तीन महीनां में जिको रे, निवड़े कार्य महान। __पांच दिनां में पूरियो रे, कालू कलानिधान हो।। २०. महासती झमकूजी नै गुरु, राख्या राजसमंद।
कुछ दिन पाछै आज्यो, करके बाकी बच्यो प्रबंध हो।। २१. पो. बिद नवमी पूज्यजी रे, पहुंच्या पुर कानोड़।
मालववासी मानवी रे, बलि आया बाहोड़ हो।।
१. लय : रात रा अमला में
१३४ / कालूयशोविलास-२