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________________ ३५. महलां में महाराण नै रे, आई. जी. पी. कर प्रणती, सारी भाखी आंख्यां झांकी, दीक्षा- मण्डप ख्यात छती । नहिं वृथा मृषा है एक रती ।। ३६. दीक्षा-मण्डप में गयो रे, मैं मन दूजी बात धरी, पिण अवलोकत अविकल कलना, म्हांरी प्रत्युत आंख ठरी । अनहद जनता में शांति भरी ।। ३७. आंख कान में आंतरो रे, च्यारांगुल से चतुर कहे, लाख हाथ रो अगर कहूं मैं, तो पिण सभ्य समाज सहे । महाराणा मन संतोष लहे ।। ३८. स्वमति अन्यमति शहर रा रे, सारा विज्ञ बखाण करै, यशोविलासे पंचम उल्लासे अघ दूजी ढाळ हरै, 'तुलसी' गुरु चरण सरोज वरै ।। ढाळः ३. दोहा १. आयो कार्तिक मास में, सुजन सैकड़ां मिल सघन, २. पंचायत नोहरे लगी, इक्कां देख चतुर चित्रित रह्या, श्री गुरुवर ३. करी प्रार्थना एक स्वर, मालव में सज्ज व्यवस्था सांतरी, सम्मुख धरी ४. मालव श्रावक-श्राविका प्रोढ़ वृद्ध मालव- श्रावक संघ । प्रसंग ।। स्पेशल ट्रेन री इक लेण । देण । । री पधराण । सुजाण ।। युव बाल । सब खेत्रां रा प्रमुख जन, प्रस्तुत है तिण काल ।। ५. अब पावस संपन्न है, 'फते मेमोरियल' में कियो, रजनी 'आहेड़' में, ६. दो मृग एकम प्रस्थान । परदेशी - व्याख्यान ।। 'दाराखेड़े' होय । दोय ।। दिन 'गुड़ली' बहि 'चन्देसरे' दिवस विराज्या ७. 'तुरक्ये' 'घासे' हो सुगुरु, 'पलाणे' पूज्य पधारे 'थामलै' मृग-बिद तेरस ८. पुर ठाकुर निज दुरग में, करवायो वीतराग-सम देशना, सुणत न धापै तीन । चीन ।। व्याख्यान । कान ।। उ५, ढा.२, ३ / १३३
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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