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ढाळः १.
दोहा
१. आज उदयपुर में अजब, चहलपहल हर द्वार। ___ होणैवाळो सामनै, शुभ दीक्षा-संस्कार ।। २. दीक्षार्थी भाई-बहन, निज अभिभावक साथ।
प्रस्तुत श्री गुरु-चरण में, कर जोड्यां नत-माथ।।
शहर उदयपुर में देखो, दीक्षा-मोच्छब मंडाणो, हेजी हां.... ।
३. दीक्षा-समारोह पावस रो मोटो आकर्षण है,
आत्मशक्ति रो प्रबल प्रदर्शण श्रम रो शुभ दर्शण है।
अंधकार रो वार रोक, आलोक-दिशा में आणो।। ४. छोड़ असंयम संयम-जीवन जीणो ही है दीक्षा,
जीवन भर अपणै जीवन री करणी कड़ी समीक्षा।
कठिन काम है अणुव्रती स्यूं महाव्रती बण ज्याणो।। ५. नहिं अभिशाप अमीरी रो, न गरीबी रो गौरव है,
नहीं गर्व गुरुता रो, हीनवृत्ति रो कहीं न रव है।
दीक्षा है सौभाग्य भाग-जागरणां रो गुणठाणो।। ६. एक-एक कर पन्द्रह दीक्षा रो आदेश दियो है,
वेरागण-वेराग्यां रो खुशियां स्यूं खिल्यो हियो है।
चहल-पहल-सी लागी, सागी बण्यो नगर जोधाणो।। ७. प्रथम-प्रथम है मिल्यो अनोखो मोको उदियापुर में,
एक साथ पन्द्रह दीक्षा, छायो विस्मय घर-घर में।
प्रतिपक्ष्यां के हाथ लग्यो ओ खुणस मिटावण टाणो।। ८. गत संवत तो मारवाड़ में बाईसी नै तारी,
अब कै मेदपाट रजधानी पन्द्रह री तैयारी। होणी चहे रुकावट, यूं मंड्यो पथ-पथ में पाणो।।
१. लय : दुनिया राम नाम नै भूली
उ.५, ढा.१ / १२७