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५. जिण री करुणा स्यूं भजै, बिंदु सिंधु रो भाव । सिंधु बिंदुता इतरथा, अद्भुत सुगुरु-प्रभाव ।।
गुरु की करुणा से बिंदु भी सिंधु बन जाता है और यदि गुरु की करुणा प्राप्त न हो तो सिंधु भी बिंदु बन जाता है । इतना अद्भुत है सुगुरु का प्रभाव ।
६. मार्मिक एक सुगुरु-वचन, जो चाढै निज शीष । पतित पुरुष पावन बणै, ज्यूं आषाढ़ मुनीश' ।।
गुरु के एक मार्मिक वचन को शिरोधार्य कर लेता है तो पतित पुरुष भी पावन बन जाता है, जैसे - आषाढ़मुनि ।
७. क्षण-क्षण लव-लव पलक-पल, सफल करै बो भक्त । सुगुरु-चरण सुखशरण में, रहै सदा अनुरक्त ।।
जो सुखमय शरण देने वाले सुगुरु चरण में सदा अनुरक्त रहता है, वह भक्त आदमी जीवन के हर क्षण, हर लव और हर पल को सफल बना लेता है।
८. श्रोतृ-श्रवण-तर्पण तरुण, अर्पण अमितानन्द ।
थर्पण चित स्थिरता स्थिता, यशोविलास अमन्द ।।
श्रोता के श्रवण-कानों को तरुण तृप्ति देने वाला, अमित आनन्द देने वाला, चित्त की स्थिरता को स्थापित करने वाला यह कालूयशोविलास अमंद - सर्वोत्कृष्ट है।
६. अब पंचम उल्लास की, रचना रचूं स्वमेव । भक्त-भक्ति- आकर्षिता, सहकारी गुरुदेव । ।
अब मैं स्वयं पांचवें उल्लास की रचना कर रहा हूं। भक्त की भक्ति से आकर्षित गुरुदेव इसमें सहकारी बनें।
१. देखें प. १ सं. २४
१२६ / कालूयशोविलास-२