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________________ ढाळ १६. दोहा १. निब्बै स्यूं बाराणवै, दीक्षा-व्यतिकर देख। पाठक-सुविधा-हित करूं, एकत्रित उल्लेख।। लावणी छंद २. निब्बै पावस स्यूं पहिला चंदेरी में, मां-बेट्यां डीडवाण री व्रत-सेरी में। चूनां मोहनां जयपुर री सूर्यकुमारी, कमलू-लघु-भगिनी संयमश्री स्वीकारी। उण्णीसै निब्बै सुजानगढ़ चोमासे, दीक्षा है आठ हुई बिद कार्तिक मासे। धनकंवरी जोड़ायत सह स्वयं हजारी, सेखाणी संत मिलाप महाव्रतधारी। मोमासर री इन्दू युत मात सुजाणां, वसुगढ़ री रायकंवर धारी गुरु-आणां। बरजू-विजयश्री' नोहर-राजकुमारी, चौथे उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। सोरठा ३. पोष मास बिद चोथ, दो दीक्षा बीदासरे। गुरु-पद ओतप्रोत, पन्नो गंगाशहर रो।। ४. कोठारी बीदाण, जंवरीमल जागृत-हृदय। कालू करुणा-खाण, पचखायो पावन चरण।। लावणी छंद ५. एकाणू पावस जबर झंड जोधाणे, दीक्षा बाईस हुई मोटै मंडाणै। १. साध्वी विजयश्रीजी का नाम पहले बरजूजी था। उ.४, ढा.१६ / ११६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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