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१४. आजीवन ओ पादविहार, चटपट चलणो ऊठसवार ।
हाथे झोळी खांधां भार, स्वेद झरै ज्यूं धारासार ।। १५. कठिन कठिनतर करणो लोच, सुणतां ही मन जागै सोच ।
रहणो अपणो मन संकोच, बात करो पूरी आलोच ।। १६. नहिं एकाध दिवस रो काम, ऊमर भर बहणो अविराम | छुल ज्यावै चरणां री चाम, संयम नहिं नानी रो धाम ।।
गुरुदेव ! दयाल ! अब तारो... ।
१७. सुण-सुण गुरु-मुख सीख सनूर, दीक्षार्थ्यां रो निखरै नूर ।
ऊग्यो दिल विराग - अंकूर, फिर नहिं संकट कष्ट करूर ।। १८. कष्ट पड़ै मुनिपति ! मरणान्त, तो पिण सहस्यां सजग नितांत ।
निज तन-मन तोल्यो एकांत, विनय सचिन्तन है चित शांत ।। १६. लागी हृदय लिवल्या एक, संयम-संयम री दृढ़ टेक | जन्मान्तर री जागी रेख, ल्यो चरणां में शुभ दृग देख ।।
दीक्षा-दातार! समझावो, निज सुत - दुहितार समझावो । समझावो पहली तावो, फिर सही हकीकत दरसावो ।।
२०. अभिभावक ऊभा लख लार, पूछै गुरुवर बारम्बार । कब स्यूं क्यूं वैराग्य विचार, किसी क आदत अरु आचार?
गुरुदेव ! दयाल ! अब तारो.... ।
२१. अभिभावक बोलै दिलदार ! हाय म्है समझा कई बार । जो हळुकर्मी नर अरु नार, बै ही आसी इण दरबार ।। २२. सहज सरल है प्रकृति स्वभाव, दाव घाव रो रंच न भाव ।
खूब खराया है गुरुराव ! अब तो पूरो करो उम्हाव ।। २३. नहिं गुरुवर स्यूं छानी बात, अंतरयामी हो तुम तात !
महर - नजर अब कीजै नाथ! देवो दीक्षा शिक्षा साथ ।। २४. इण पर भर परिषद में छाण, कर-कर सार्वत्रिक पहचाण । आ पन्द्रहवीं ढाळ सुजाण, पूरी सद्गुरु- करुणा पाण ।।
११८ / कालूयशोविलास-२