SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४. नई बात रो घर-घर बार बखाण जी, गणिराजा री भारी प्रभुता री छवी। कुण गिणती में आवै राजा राणजी, महाव्रती नै सुरपति धोखै सिर नवी।। १५. पांचम प्रातः पुर में पूज्य प्रवेश जी, स्वागत कीन्हो नागर-नर अति उम्मही। अटल उजागर सागर सुगुण-निवेश जी, सुंदर शब्दां सद्गुरु संथवणा कही ।। १६. पंचायत-नोहरा में शासणराय जी, पावस ठायो विक्रम संवत बाणवै। जुग बत्तीसी श्रमण-सती शोभाय जी, गुरु-सेवा स्यूं सफल मनोरथ माणवै।। दोहा १७. ओ राणाजी रो नगर, ओ है वर्षावास। नभ में चमकै चंचला, बाजै शीत बतास।। १८. दुर्जन-मन घन री हुवै, एक रीत विख्यात। प्राप्त पराई प्रेरणा, बिगड़े बणै क्षणात।। १६. अब्धि-शेष-शय्या तजी, सझी वेश अभिराम। जाणै क्यूं नभ में कियो, घनश्याम विश्राम।। २०. पर-धन पा फूलै सघन, विधि-दुकूल उन्मूल। बो बरसाती-सुरसुरी, कबहि उड़ासी धूल।। २१. अनावृष्टि अतिवृष्टि स्यूं, करै जगत आघात। तिण स्यूं जीवन-जलद री कहिवाये जड़ जात।। २२. बढ़ती-बढ़ती ही बढ़े, शनै-शनै शुरुवात। बा 'कलाण' उतराद की, सज्जन प्रीति सुजात।। २३. वर्षा में भोगी भ्रमर, विलसै विषय-विलीण। सन्त शांत-मन तप तपै, त्रिविधे पडिसंलीण।। २४. प्रमुख उद्धरण बुद्ध लै, करण क्षणिक मत सिद्ध'। सघन घनाघन गगन में, सुषमा वरै समिद्ध।। १. देखें, प. १ सं. २३ उ.४, ढा.१४ / ११५
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy