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'म्हारा पूज्य परम गुरु! श्री भिक्षूशासण नै थांरी देण ।
२५. मुनि श्रमण्यां में आगम विद्याभ्यास जी,
सुंदर रूपे चालू सुगुरु- प्रयास स्यूं । श्रावण मासे संघ - चतुष्टय खास जी, एक-एक पचरंगी तप विश्वास स्यूं । । २६. मोटो मेदपाट पर्यूषण पर्व जी,
आठ दिवस कइ तप अट्ठाई आदरै । काम-धाम अरु समारंभ तज सर्व जी, परम धरम आलंबन गुरु-चरणां परै ।। २७. वाहन पाहन न्हावन धावन त्याग जी, आवन जावन पिण अल्पांशे आचरे । हिंसा टाकै हालै दृग लखि माग जी, बोलत पण जयणात वयणां वागरै ।। २८. अति आरंभ दम्भ दिल दूरी छोड़ जी, सामायिक पौषध औषध अनुपान स्यूं । आठ दिवस लग लेवै तज झकझोड़ जी, त्यूं आत्मिक आमय-उपशम अनुमान स्यूं ।। २६. सांवत्सर पर्वाधिराज गुरुराज जी,
खूब मनायो पायो सुकृत सुहावणो । ढाळ चवदमी तूर्योल्लासे साझ जी, कालूयशोविलास सुजन - मनभावणो ।।
ढाळ: १५.
दोहा
१. भाद्रव शुक्ल त्रयोदशी, भिक्षु चरमकल्याण । पूनम पट्टोत्सव प्रवर, कालू गुण - गरिमाण ।। २. दोनूं उत्सव संघ हित, है संगठन - प्रतीक । जयाचार्य री सूझरी, आ परिणति निर्भीक ।।
१. लय : काळी काळी काजळियै री रेख जी
११६ / कालूयशोविलास-२