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________________ श्री कालू रे उदयाचल-भाण, मुनिप महान मनोबली। श्री कालू रे म्हारा जीवन-प्राण, मुनिप महान मनोबली।। १२. छाला उठ-उठ सांवठा, अति झरिया रे झरणां ज्यूं जाण। ___ठाम-ठाम व्रण विस्तऱ्या, लहि वेदन रे काइक लघिमाण।। १३. 'रामसिंहजी रै गुड़े', राज्या राज्या रे गुरु दिवस अठार। ___'जोजावर' जनता तरी, आया आया रे करुणा-आगार।। १४. ठाकुर केसरसिंहजी, पुरवासी रे मिल श्रावक सर्व। स्हामेळो स्हाज्यो सही, खरी खिदमत रे सरजी तज गर्व।। १५. गढ़ माही इक हाजरी, करवाई रे अति आग्रह ठाण। सुण गुरु-मुख-वचनावली, विरुदावलि रे बोली बहु माण।। १६. सात दिवस वासो बसी, गुरुराया रे आया भवि भाग। _ 'सिरियारी' में शोभता, मनु पाया रे कांठा रो थाग।। १७. नाथूसिंहजी कंवरजी, संग लेई रे निस्साण-नगार। बाहिर तक हाजिर हुया-गुरु चरणां रे वरणूं अति प्यार।। १८. गढ़ मांही दरसण दिया, पुरपति नै रे बूढ़ापो जाण। ___च्यार-पांच पीयां लसै, तंयासी रे वर्षायू माण।। १६. श्री आदिम गुरुदेव रो, 'सिरियारी' रे चरमोच्छब ठाण। पक्की हाट विलोकतां, दिल साल्यो रे सहि आईठाण ।। २०. गोडो तो छोडै नहीं, निज झरणो रे गुरु रो दृढ़ कोल। मेदपाट है पहुंचणो, इण बरसे रे दीधो धुर बोल ।। २१. तीजै दिन सायं समै, पधराया रे चोकी फूलाद। खास मास वैशाख री, अख-तृतीया रे आई साह्लाद ।। २२. मानव मरु मेवाड़ रा, शत संख्या रे सहज्यां समवेत। मधुकर वर मकरंद ज्यूं, गुरु-पदरज रे सेवै समचेत ।। २३. जंगल में मंगळ भयो, अनु राघव रे साकेत सुजाण। शुष्क बाग हरियो हुवै', हरि-बंसरि रे बाजत सप्राण।। दोहा २४. जंगळ में मंगळ किंयां, हुयो विमल विरतंत। अल्पाक्षर आखू अखिल, श्रोता! सुणो सतंत।। १. देखें प. १ सं. १६ २. देखें प. १ सं. २० १०२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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