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________________ ढाळ: १०. दोहा १. 'सीरवादै' अरु 'वासणी', 'धाकड़' 'धीनावास' । 'सोजत', 'सोजतरोड़' में, कर होली चउमास ।। २. बलि ‘मुसालियै' मोद में, सद्गुरु ‘सेखावास' । कंटालिय-पुर- अधिपति, भेट्या सहज सुवास ।। ३. 'मांडै' चरणाम्बुज धर्या, पुर ठाकुर दिल म । दरसन कर परसन हुया, मृग - शिकार रो नेम ।। ४. निर्मल दिल गुरु 'नीमली', ठाकरवास निवास । ६. 'चिरपटियै' दो दिन रही, राजत 'राणावास' । ५. तत्र विराज्या तीन दिन, 'गाधाणै' दिन दोय । 'आंगदूस' में एक दिन, की करुणा अवलोय ।। अबलों समरूं आंगदू बारठजी रो गीत' । कविगोष्ठी-सी हो चली, पूज्य प्रभाव पुनीत ।। ७. 'रामसिंहजी रै गुड़ै', गोडां पीड़ विशेष | बाधा गमनागमन में, रहणै लगी हमेश ।। ८. गुरुवर यूं सोचै तदा, घाटो रह्यो नजीक । मेदपाट रा मानवी, सारा करै अडीक ।। ६. प्रगटी जानू-वेदना, करणो उचित उपाय। ज्यूं भाखर-भू जाण - हित, सज्ज बणै मुझ पाय ।। १०. सेवितपूर्व सुसंभ, भद्रंकरण भिलाव' । सीक भरी जानू परे, लीक करी लघु साव ।। ११. प्रातः प्रवचन मगन मुनि, निशा और मध्यान । मैं प्रवचनकारक बण्यो, गुरुवर कृपा महान ।। मुनिप महान मनोबली, श्री कालू रे शरणागत त्राण, मुनिप महान मनोबली । १. देखें प. १ सं. १८ २. वि. सं. १६७८ रतनगढ़ में घुटनों की पीड़ा में एक बार भिलावे का प्रयोग किया था । ३. लय : भवन सुन्दरि जय सुन्दरी उ.४, ढा. १० / १०१
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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