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________________ २०. अनुप्रास-अखरोट-सुभावित भाव-प्रभावित पूर, सुयो सोरठो चित्त चोरटो, निखय म्हांरो नूर । मगन - इशारे मैं बिन भारे, दोहो' चरण चढ़ाऊं । । २१. एक बार सुण सुण्यो दुबारा दूधां-धारा पोख, सुधा-स्यन्दिनी दृष्टि दिखाकर, म्हांरो मन संतोख । देइ विदाई रूं-रूं छाई, खुशियां कभी भुलाऊं । । २२. ‘चतराजी रै गुड़ै’ गणाधिप, नवमी दिन मध्याह्न, पुनरपि सोरठियो' गुणगठियो, दियो दयानिधि दान । मैं पिण ततखिण अक्षर विण-विण', चरणां धोक लगाऊं । । २३. सन्तां में सतियां में फैली, गुरुवर कृपा-सुवास, वरणां में वरणूं बा करुणा, वरण न म्हांरै पास । जद-जद याद करूं बै बातां, रातां नहिं सो पाऊं । । २४. रामचरित्र रटायो मुझनै अद्भुत आगम-दृष्टि, कुण जाणी दो बरसां में ही होसी अभिनव सृष्टि । चकित - चकित सारा ही रहग्या, मैं महिमा महकाऊं । । पूज्य परमेश! पधारो देश मेवाड़ा । २५. करुणानिधि गाम 'कंटाल्ये' च्यार दिवस ही, देख्यो गुरु जन्म-मुकाम, देख्यो गुरु जन्म-मुकाम। त्युं ही दिन च्यार 'मुसाल्ये' मुनिप विराज्या, नवमी आ ढाळ निशाम, नवमी आ ढाळ निशाम ।। १. श्री तुलसीगणी - विरचित सोरठा महर रखो महाराय ! लख चाकर पद कमल नो । सीख अपो सुखदाय, जिम जलदी शिवगति लहूं । । २. श्री कालूगणी - विरचित सोरठा शिशु मुनिवर ! सुविशेख, क्रिया नित्य निर्मल करो । रंच न चूको रेख देख-देख पगला धरो ।। ३. श्री तुलसीगणी - विरचित सोरठा चित में अहोनिशि चैन, भाग्य दिशा जागी भली । श्रवण करां श्रवणेन सीख अमोलक स्वाम री ।। ४. लय : पिओ नी परदेशी १०० / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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