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०५. ऊंची दृग छोगां-छावो देखी उम्हावो,
दिल रो दरियावो देव। वचने आश्वासन दीन्हो निमल नगीनो,
सींच्यो रस शांत सुधेव ।। १५. दिवसां उगणीसां आभा सुधरी में पाई,
छाई छवि जिन-अनुहार। विचरै बलि पुर-पुर गामे विमल विभा में,
करता भारी उपकार ।।
दोहा १६. 'पीपलाद' स्यू पूज्यवर, 'केलवाज' अविवाद।
च्यार गुड़ा' पद-फरसणा, 'बडै गुडै' संवाद ।।
पहलो मोको मिल्यो अनोखो ओ संवाद सुणाऊं। गाऊं कालूयशोविलास में, उल्लास में उल्लास में।।
१७. 'बड़े गुडै' फाल्गुन सित सातम, एकाणू री साल,
सायं प्रतिक्रमण री बेला, सम शीतोषण काल। गुरु-चरणां में मुनि सिर नामे, मैं पिण वंदन ठाऊं।।
गाऊं कालूयशोविलास में, उल्लास में उल्लास में।। १८. सक्कारेमी सम्माणेमी, कल्लाणं मांगल्य,
दैवत चैत्यं पर्युपासना करूं भाग्य-प्राबल्य।
कर सुखपृच्छा ऊठ यदृच्छा, मुनि-वंदन जब जाऊं।। १६. तुलसी! तुलसी! सम्बोधन कर, पुनि तेड्यो गुरुदेव,
झट बाहुड़ मैं जोड़ उभय कर, ऊभो सारूं सेव। लै लै सुण-सुण सद्गुण चुण-चुण, सोरठियो संभळाऊं।।
१. रामसिंहजी का गुड़ा, चतराजी का गुड़ा, अजबोजी का गुड़ा और बड़ा गुड़ा। २. लय : ठुमक-ठुमक पग धरती ३. श्री कालूगणी-विरचित सोरठा
सीखो विद्या सार, परहो कर परमाद नै। बधसी बहु विस्तार, धार सीख धीरज मनै ।।
उ.४, ढा.६/६६