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अपनी पैतृक-भूमि के दर्शन करने जब कभी अवश्य आते रहते हैं। यहाँ दो दिगम्बर जैन-मन्दिर हैं, जिनमें शांतिनाथ स्वामी के मन्दिर में 11वीं से 13वीं शताब्दी की अनेक जिन-प्रतिमायें हैं, जिनमें शांतिनाथ भगवान् की मूर्ति अत्यधिक मनोहर, प्राचीन एवं कलापूर्ण है। यहाँ खुदाई में अनेक मूर्तियाँ प्राप्त होती रहती हैं, जिससे पता चलता है कि 'बघेरा' कभी वैभवशाली विशाल नगर था; तब दिगम्बरजैन-समाज यहाँ अच्छी संख्या में रहता था। शांतिनाथ स्वामी का मन्दिर अतिशयक्षेत्र के रूप में विख्यात है, जिसके दर्शनार्थ जैन, अजैन सभी आते हैं। शांतिनाथ स्वामी की प्रतिमा लगभग 9 फीट ऊँची है, जो भूगर्भ से प्राप्त हुई थी। इसके लेख से पता चलता है कि संवत् 1254 में इसकी प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस मन्दिर के निर्माण का 'बिजौलिया' के शिलालेख में उल्लेख आता है कि 'प्राग्वाट वंश' के 'वैश्रवण श्रेष्ठि' ने 'व्याधरेक' आदि स्थानों में मन्दिरों का निर्माण करवाया था। यह शिलालेख विक्रम संवत् 1226 का है। शिलालेख के अनुसार वैश्रवण श्रेष्ठि कोणार्क से 8 पीढ़ी पूर्व हुआ था। यदि 35 वर्ष की एक पीढ़ी मानी जाये, तो वैश्रवण श्रेष्ठ 10वीं शताब्दी में होना चाहिये और उसी समय 'बघेरा' में मन्दिर का निर्माण होना चाहिये। 'बघेरा' ग्राम में जितनी भी मूर्तियाँ निकली हैं, वे सभी 12वीं शताब्दी की हैं।
बघेरवाल जाति के 52 गोत्र माने गये हैं, जिनका वर्णन भी उक्त रास में किया गया है
बावन गोत उद्योतवर, अवनि हुआ अवतार।
विवधि तास जस बिस्तरो, ए करणी अधिकारी॥ इन गोत्रों के नाम इसप्रकार हैं – खंडवड, लांबाबांस, खासूव्या, धानोत्या समधरा, बाई, सीघडतोड, कागट्या, हरसोरा, साहुला, कोरिया, भंडा, कटारया, बनावड़या, ठोल्या, पगास्या, बोरखंड्या, दीवाड्या, बंडमूडी, तातहडसया, मंडाया, बदलचढ़, पोतल्या, दरोग्या, भूरया, दहलोद्द, निठरगीवाल, मथुरया, गुहीवाल, साखूण्या, सरवाड्या, पापल्या, डूंगरवाल, ठग, वहसि, सेडिया, चमारया, सांभरया, सुरलक्या, घोटापा, सोलौरया, गद्द, वेतग्या, खरड्या।
बघेरवालों के ठोल्या, साखूण्या, पीतल्या, निगोत्या, पापल्या, कटार्या जैसे गोत्र खण्डेलवाल-जैनों के गोत्रों से मिलते-जुलते हैं।
इन गोत्रों में 25 गोत्र 'काष्ठासंघ' के एवं शेष 27 गोत्र 'मूलसंघी' माने जाते हैं। चित्तौड़-किले पर स्थित जैन-कीर्तिस्तम्भ 'साह जोजा' द्वारा बनवाया गया था। ये 'बघेरवाल' जाति के श्रावक थे। नैनवा, कोटा, बूंदी में बघेरवालों के विशाल मन्दिर बने हुये हैं। चांदखेड़ी क्षेत्र की स्थापना, मन्दिर का निर्माण तथा विक्रम संवत् 1746 में विशाल पंचकल्याणक-प्रतिष्ठा-महोत्सव किशनदास-बघेरवाल द्वारा कराया गया
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ