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था। महापण्डित 'आशाधर' बघेरवाल-जाति के भूषण थे।12 देश में बघेरवालों की संख्या एक लाख से ऊपर गिनी जाती है। 5. जैसवाल
17वीं शताब्दी के 'कवि बुलाखीचन्द' जैसवाल-जाति के थे। उन्होंने अपने 'वचनकोश' (संवत् 1737) में जैसवाल-जाति की उत्पत्ति 'जैसलमेर नगर' से मानी है।13 यह जाति भगवान् महावीर के उपदेश से जैनधर्म में दीक्षित हुई। जैसवाल दो उपजातियों में विभक्त है - एक 'तिरोतिया' एवं दूसरा 'उपरोतिया'। 'उपरोतिया' जैसवाल 'काष्ठासंघी' एवं 'तिरोतिया मूलसंघी' जैन-धर्मावलम्बी हैं। 'उपरोतिया' शाखा के 36 गोत्र एवं 'तिरोतिया' शाखा के 46 गोत्र हैं। जैसवाल 'इक्ष्वाकु-कुल' के क्षत्रिय थे, जो वैश्य-कुल में परिवर्तित हो गये थे।
'जैसवाल-जाति' में अनेक राजा, राजश्रेष्ठ, महामात्य और राजमान्य महापुरुष हो गये हैं विक्रम-संवत् 1190 में जैसवाल-वंशी साहू नेमिचन्द्र ने कवि श्रीधर से 'वर्धमान-चरित' की रचना कराई थी। जैसवाल-जाति के कवि माणिक्यराज ने 'अमरसेन-चरित' एवं 'नागकुमार-चरित' की रचना की थी। तोमरवंशी राजा बीरमदेव के महामात्य जैसवाल कुशराज ने 'ग्वालियर' (म.प्र.) में चन्द्रप्रभु भगवान् का मन्दिर बनवाया था तथा संवत् 1475 में एक-यंत्र की प्रतिष्ठा करवाई थी, जो आजकल 'नरवर' के मन्दिर में विराजमान हैं। जैसवाल-कुलोत्पन्न कविवर लक्ष्मणदेव ने विक्रम संवत् 1275 में 'जिणयत्त-चरिउ' नामक अपभ्रंश-ग्रंथ की रचना की थी। विक्रम संवत् 1752 में जैसवाल-कुलोत्पन्न देल्ह कवि ने 'जिनदत्त-चरित' की रचना समाप्त की थी। जैसवाल-जैन-समाज के आगरा, ग्वालियर, फिरोजाबाद, झालावाड़ आदि नगर प्रमुख-केन्द्र माने जाते हैं। देश में जैसवाल-जैन-समाज की संख्या एक लाख से अधिक होगी। जैसवाल-जैन-समाज का विस्तृत इतिहास 31 मार्च, 1988 को श्री रणजीत जैन एडवोकेट ने लिखकर प्रकाशित कराया है।15 6. पल्लीवाल
___'पल्लीवाल' प्रारम्भ में दिगम्बर-जैन-जाति थी, लेकिन विगत 300-400 वर्षों से इस जाति में कुछ परिवार श्वेताम्बर-धर्म माननेवाले भी हो गये। लेकिन वर्तमान में यह जाति मुख्यतः दिगम्बर-धर्मानुयायी ही है। खण्डेला से खण्डेलवाल, अग्रोहा से अग्रवाल-जाति के समान 'पल्लवी-जाति' की उत्पत्ति राजस्थान के 'पाली' नगर से मानी जाती थी, लेकिन डॉ. अनिल कुमार जैन ने नयी खोज के आधार पर यह सिद्ध किया है कि 'पल्लीवाल-जाति' दक्षिण-भारत के 'पल्ली' नगर में उत्पन्न हुई
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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