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अलबेली माम्रपाली २०३
प्रकार प्रकट रूप में रह नहीं सकती।"
सुनंद की बात सबको यथार्थ लगी। फिर भी सिंहनायक ने कहा- "मैं आज ही जनपदकल्याणी से मिलूंगा और सुनंद की शंका की खोज करूंगा किन्तु हमें कादंबिनी पर दृष्टि तो रखनी ही चाहिए।"
"इसका मैं स्वयं प्रबन्ध कर लूंगा।" सुनंद ने कहा। फिर सभी अपने-अपने स्थान पर चले गए।"
सिंह सेनापति ने अपने दूत के द्वारा आम्रपाली को संदेश भेजा और कहलवाया कि आज सायं वे सप्तभूमि प्रासाद पर आएंगे।
प्रातःकाल की यह चर्चा गुप्त नहीं रह सकी।
सिंहनायक के भवन में दो-चार दास उस समय खंड के बाहर खड़े थे। उन्होंने भीतर की चर्चा ध्यान से सुनी।
दास-दासियों के हृदय में ऐसी बातें टिकती नहीं। ये बातें दस कानों तक पहुंची और उन्होंने सारा वृत्तान्त कादंबिनी को कह सुनाया।
यह वृत्तान्त सुनकर कादंबिनी गम्भीर विचारों में फंस गयी। फिर भी उसने कहा-"हमें घबराना नहीं चाहिए। अब ये सभी विषकन्या के चक्कर में फंस जाएंगे।"
वृद्ध नियामक चला गया।
कादंबिनी ने मन-ही-मन गोपालस्वामी के अनुमान को दाद दी । उसके मन में एक नयी आशा जागी । यदि ऐसे महान् वैद्य मुझे विषमुक्त कर दें तो फिर अभिशाप की अग्नि में कोई नहीं जलेगा । गोपाल स्वामी से कैसे मिला जाए ? यदि मैं अपनी दुःखभरी कथा उनको यहां सुनाऊं तो निश्चित है मुझे वैशाली के कारावास की हवा खानी पड़ेगी।
तो..?
दूसरा विचार भी आया. कदाचित् वैशाली के चर विभाग को यहां की शंका हो और विषम परिस्थिति उत्पन्न कर दे तब क्या हो ? अथवा रूपमुग्ध कोई युवक मिलने आए और चुम्बन के लिए प्रयत्न करे तब तो सारा भेद प्रकट हो जाएगा।
नहीं.'नहीं।
वैशाली का चर विभाग कोई प्रयत्न करे, उससे पूर्व ही अपनी सुरक्षा की व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
इस प्रकार वह अनेक विचारों में निमग्न हो गयी और उस समय मुख्य परिचारिका लक्ष्मी दीदी कमरे में प्रविष्ट हुई । उसने कादंबिनी को विचारमग्न देखकर कहा- "देवि ! किसी गम्भीर विचार में हैं ?"