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२०४ अलबेली आम्रपाली
"हां, लक्ष्मी ! अब हमें सावचेत रहना चाहिए। नगरी में जो चर्चा हो रही है, तूने सुनी होगी ?"
"हां, देवि ! इसीलिए तो आपके पास आयी हूं ।"
"हमें क्या करना चाहिए ?"
" मंत्रीश्वर के पास दूत भेजें।"
" इसमें बहुत समय लगेगा। कदाचित् उसके लौटने से पूर्व ही हम फंस जाएं ।”
"परन्तु आप विषकन्या तो हैं नहीं ।"
" फिर भी विष प्रयोग तो करती ही हूं। बाहर से आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर । वे लोग हमारे पर नजर रखें तो हम यहां से छिटक नहीं पाएंगी ।"
"तो..."
"धीरे-धीरे हम सबको यहां से पलायन कर जाना चाहिए। सबसे पहले मैं पुरुष वेश में एक संरक्षक के साथ यहां से चली जाऊंगी। फिर तुम सब यहां से धीरे-धीरे निकल जाना ।"
लक्ष्मी दीदी विचार करने लगी ।
कादंबिनी ने कहा - "यहां से छिटक जाने का एक उपाय सूझ रहा है । कल मैं प्रातःकाल यक्ष मन्दिर में जाऊंगी। वहां से मैं पुरुषवेश में निकल जाऊंगी । साथ में एक रक्षक आएगा। तुम सब यक्ष मन्दिर लौट आना। दूसरे दिन तुम प्रातः पुनः यक्ष मन्दिर में आना और चिल्ला-चिल्लाकर कहना कि मुझे और सुभद्रा को कोई बलपूर्वक उठा ले गया है। यह बात नगर-रक्षक तक पहुंचानी है । मेरा तो उनको अता-पता मिलेगा ही नहीं। इसलिए एकाध सप्ताह के पश्चात् तुम सभी राजगृह नगरी में आ जाना ।"
लक्ष्मी के चेहरे पर हर्ष की रेखा खिंच गई। उसने कहा - "देवि ! आपकी बुद्ध-शक्ति बेजोड़ है।
"तो तू सारी तैयारी कर । सुवर्ण मुद्राओं की दो थैलियां हैं। एक मैं साथ में रखूंगी। शेष तुम ही अपने साथ ले आना ।"
"जी" कहकर लक्ष्मी दीदी वहां से चली गई ।
कादंबिनी ने इस योजना के साथ-साथ अपनी मुक्ति का भी विचार कर लिया था। स्वयं ने चम्पा नगरी जाने का संकल्प किया था और शेष सभी राजगृह पहुंचें, ऐसा अभिप्राय व्यक्त किया था । स्वयं का संकल्प किसी को नहीं
बताया था ।
४३. नयी चिन्ता
बिंबिसार वैशाली के विनाश के लिए नियोजित षड्यन्त्र का नायक है, यह बात