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के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार की जागृत अवस्थाएं चेतन अवस्थाओं के कारण होती हैं। ये चेतन अवस्थाएं ही संवेग कहलाती हैं।
2. संवेग में विभिन्न प्रकार के व्यवहार शामिल हैं- जैसे मुस्कराना, हंसना, चिल्लाना, भागना, श्वास लेना आदि। इनके अतिरिक्त मानव या पशु में कुछ स्व संचालित व्यवहार संवेग के कारण होते हैं। उदाहरण के लिए भय के समय रक्त-चाप और चीनी की मात्रा बढ़ जाती है। संवेग की अवस्था में ग्रंथियों का स्राव बढ़ना या कम होना स्व संचालित संवेगीय प्रतिक्रियाओं के उदाहरण हैं।
3. संवेगीय अनुभव, जैसे भय, उत्तेजना आदि इतनी जटिल क्रियाएं होती है कि इनको शारीरिक आधार पर समझना कठिन है। ऐसे अनुभव अंतःस्रावी ग्रंथियों के प्रभाव से ही होते हैं। 5 प्रारंभ में संवेगों में दैहिक तथ्यों का विशेष महत्त्व रहा है। किन्तु नये अन्वेषण से इस विषय में नये तथ्य सामने आये है। कैनन तथा वार्ड जैसे मनोवैज्ञानिक जहां संवेग का मुख्य स्थान थेलेमस स्वीकार करते हैं, वहां जेम्स और लांगे के मत से संवेगों का कारण परिफेरल तत्त्व है।
___ संवेग से मानसिक और शारीरिक परिवर्तन होने लगते हैं। किन्तु प्रश्न यह है कि पहले किस पर प्रभाव होता हैं ? इस निश्चय तक पहुंचने के लिये संवेग के कई सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि संवेग का प्रभाव पहले मानसिक क्रियाओं पर पड़ता है तत्पश्चात् शारीरिक क्रियाओं पर। किन्तु इसकी पुष्टि में पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिलते। संवेगात्मक व्यवहार के लिए जिम्मेदार मुख्य शारीरिक एवं स्नायविक अंग निम्नानुसार हैं। इनके स्वरूप कार्यों और प्रभावों की चर्चा पूर्व में की जा चुकी है
(1) अन्त: स्रावी ग्रंथियां (Enodocrine Glands) (2) स्वचालित तंत्रिका तंत्र (Autonomous Nervous System) (3) मेडुला (Mudulla) (4) मध्य-मस्तिष्क (Mid Brain) (5) लघु-मस्तिष्क (Hypothalamus) (6) चेतक (Thalamus) (7) भावनातंत्र (Limbic System) (8) प्रमस्तिष्क कार्टेक्स (Cerebral Cortex)
क्रिया और शरीर - विज्ञान
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