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55. तत्त्वार्थ सूत्र, सर्वार्थ सिद्धि; 9/2, इष्टे स्थाने धत्ते इति धर्मः । 55. (ख) जि.चू. पृ. 15
दुर्गति प्रसृतान् जीवान् यस्माद धारयते ततः ।
धत्ते चैतान् शुभे स्थाने, तस्माद् धर्म इति स्थितः ॥
56. उत्तराध्ययन; 2
57. समवायांग; 22/1
58. भगवती; 8/8
59. नवपदार्थ; पृ. 523
60. टीकम डोसी की चर्चा, उद्धृत नवपदार्थ से; पृ. 526 से 61. वही
62. झीणी चर्चा; ढ़ाल . 6 63. सूयगडो; 2/4
64. स्थानांग; 1/109-126
65. झीणी चर्चा; ढाल .
6
66. जीव - अजीव; पृ. 164-165 67. सूत्रकृतांग; 1/8/16
68. अंगुत्तर निकाय; 6 / 58
69. जैनेन्द्र सिद्धांत कोष, भाग 2; 621
70. भगवती आराधना; 1659
71. तत्त्वार्थ वार्तिक; 1/4/12 72. जैन सिद्धांत दीपिका; 5 / 16
तपसा कर्म विच्छेदादात्मनैर्मल्यं निर्जरा। 73. नवपदार्थ, आश्रवपदार्थ; ढाल - 1/55 74. चन्द्रप्रभ चरितम्; 18/109-110 उद्धत नवपदार्थ से; पृ.610, निर्जरा 2 75. तत्त्वार्थसार; 7/24
76. नव तत्त्व साहित्य संग्रह; गा. 128 उद्घृत नवपदार्थ - 611
ज्ञेया सामा यमिनामकामान्य देहिनाम् ।
77. द्वादशानुप्रेक्षा, निर्जरा अनुप्रेक्षा; 103-104 78. दसवैकालिक; 9/4/6
नो इहलोगट्ठयाए तवमहिट्ठेज्जा नो परलोगट्टयाए तवमहिट्ठेज्जा
नो कित्तिवण्ण- सद्द-सिलोगट्टयाए तवमहिट्ठेज्जा नन्नत्थ निज्जरट्ठयाए तवमहिट्ठेज्जा ।।
क्रिया और अन्तक्रिया
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