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2 अयन = एक वर्ष
5 साल = एक युग
70 क्रोडाक्रोड 56 लाख क्रोडवर्ष एक पूर्व असंख्य वर्ष = एक पल्योपम
10 क्रोडाक्रोड पल्योपम = एक कालचक्र
20 क्रोडाक्रोड सागर = एक काल चक्र
अनन्त कालचक्र = एक पुद्गल - परावर्तन
उसमें कुछ कम देशोन अर्द्ध पुद्गल परावर्तन कहलाता है।
2. मोक्ष जाने की सीमा निर्धारित होते ही अन्तक्रिया प्रारंभ होती है।
3. जिस भव में मोक्ष जाना है, उसमें जब से संन्यास लिया जाता है, उसी समय से अन्तक्रिया का प्रारम्भ माना जाता है।
अनन्तर और परम्पर अन्तक्रिया
नाक से सीधे मनुष्य भव में आकर अन्तक्रिया करते हैं, उसे अनन्तर अन्तक्रिया कहते हैं। बीच में एक या एक से अधिक अन्य भव करके अन्तक्रिया करते हैं, वह परम्पर अन्तक्रिया कहलाती है। रत्नप्रभा से पंकप्रभा के नारक दोनों प्रकार की अन्तक्रिया करते हैं। धूम प्रभा से तमतमा तक के नारक परम्पर अन्तक्रिया करते हैं। इसी प्रकार असुर कुमार देव, पृथ्वी, अपू, वनस्पतिकायिक जीव, तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यंतर, ज्योतिषी वैमानिक जीवों के दोनों प्रकार की अन्तक्रिया मानी गई है। अग्नि, वायु और तीन विकलेन्द्रिय के केवल परम्पर अन्तक्रिया होती है। नारक से लेकर वैमानिक तक के जीवों की अन्तक्रिया का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।
अनन्तर अंतक्रिया
परम्पर अन्तक्रिया
जीव
रत्नप्रभा से पंकप्रभा तक के नारक, असुर कुमार, पृथ्वी, अपू, वनस्पति धूमप्रभा, तमतमाप्रभा, अग्नि, वायु, तीन विकलेन्द्रिय
तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक
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है।
नहीं करते।
करते हैं।
है।
करते हैं।
करते हैं।
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया