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शुक्लध्यान के चतुर्थ भेद में स्थित होता है, उस समय अन्तक्रिया होती है। जीव अन्तक्रिया विविध प्रकार से विविध अवस्थाओं में करता है। ___1.संसार की सीमा जब देशोन अर्द्ध पुद्गल परावर्तन की रह जाती है, तब से ही अन्तक्रिया का शुभारंभ हो जाता है अर्द्ध पुद्गल परावर्तन- यह एक काल की इकाई है। जीव द्वारा पुद्गलों को ग्रहण कर शरीर, भाषा, मन और श्वासोच्छ्वास रूप में परिणत करके पुनः छोड़ देने में जितना समय लगता है उतने समय को पुद्गल परावर्तन कहा जाता है। अथवा- एक जीव को द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से औदारिक आदि सातों वर्गणाओं के पुद्गलों को क्रमश : या व्युत्क्रम से काम में लेने से जितना समय लगता है, वह एक पुद्गलपरावर्त कहलाता है।
काल के विभागअविभाज्य काल- एक समय। असंख्य काल- एक आवलिका। 256 आवलिका- एक क्षुल्लक भव (सबसे छोटी आयु) 2223 1229 आवलिका= एक उच्छ्वास निश्वास
3773
4446 2458 आवलिका या साधिक 17 क्षुल्लक भव या = एक प्राण
3773 एक श्वासोच्छ्वास 7 प्राण = एक स्तोक 7 स्तोक = एक लव 3811 लव = एक घड़ी (24 मिनिट)
77 लव = दो घड़ी / अथवा 65536 क्षुल्लक भव। या 16777216 आवलिका अथवा 3773 प्राण। अथवा एक मुहूर्त (सामायिक - काल)
30 मुहूर्त = एक दिन = रात (अहोरात्र) 15 दिन = एक पक्ष। 2 पक्ष = एक मास। 2 मास = एक ऋतु
3 ऋतु = एक अयन क्रिया और अन्तक्रिया
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