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84. धवला; 14/10 /2, 14/5-6
85. सर्वार्थसिद्धि; 8/21/398/3
86. तत्त्वार्थ राजवार्तिक; 8 / 21 / 1 /583/13
87. नंदी हरिभद्रया वृत्ति; पृ. 105
88. विपाक सूत्र, अभयदेव वृत्ति, उद्धृत ठाणं, पृ. 1001
89. स्थानांग; 4/1/249 - की टीका
आक्रोशादिकारणनिरपेक्ष: केवल क्रोधवेदनीयोदयात् यो भवति सोऽप्रतिष्ठितः ।
90. प्रज्ञापना; 23/1/293
91. भगवती वृत्ति; 1 /4/40
92. वही; 1/4/40
93. प्रज्ञापना; 23/1/292
94. जैन सिद्धांत दीपिका; 4/8 सामान्योपात्तकर्मणा स्वभाव: प्रकृत्तिः ।
95. जैनेन्द्र सिद्धांत कोश; भा. 1 पृ. 87
96. जैन तत्त्व प्रकाश; 4/9 कालावधारणं स्थिति:
97. वही; 4/10 विपाकोऽनुभागः
98. वही; 4/11 (दलसंचय : प्रदेश : 1 )
99. (क) महाभारत (शांतिपर्व ); गोरखपुर, 1291
(ख) गीता रहस्य ; पृ. 268
100. (क) जैन बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 316
100. (ख) उत्तराध्ययन; 4 / 4, 13 / 10, 13, 20/37
101. भगवती; 1/2/64
102. जैन दर्शन- मनन और मीमांसा; पृ. 167
103. धवला; 1/1, 1/16/180/1
104. जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, भा. 2; पृ. 4
105. तत्त्वार्थ सूत्र; 8/2-3
106. जैन सिद्धांत दीपिका; पृ. 74
107. वही; 4/5 अबाधाकालो विद्यमानता च सत्ता ।
क्रिया और पुनर्जन्म
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