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फ्रिक्वेन्सी वाली विद्युत तरंग की तरह काम करती है। शरीर का रूपान्तरण होने पर भी ज्ञान, अनुभूति, स्मृति आदि के रूप में तरंगें विद्यमान रहती हैं। टी.वी. सेट से टी.वी. की तरंगें भिन्न है, यह स्पष्ट है वैसे ही शरीर से चैतन्य भिन्न है।
सभी आस्तिक दर्शन इस बात से सहमत हैं कि पुराने संस्कार जीवन के साथ जुड़े हुए हैं। समय समय पर वे शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक प्रवृत्तियों में अभिव्यक्त होते हैं। वर्तमान में मानव जो कुछ भी अच्छा-बुरा कर्म करता है, उसका परिणाम इस जन्म में, अगले जन्म में या किसी भी जन्म में अवश्य मिलता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है- जन्म जात शिशु का हंसना, रोना आदि प्रवृत्तियां।23
आक्सीजन प्राण पोषक तत्त्व है, हाईड्रोजन प्राणनाशक ये दोनों विरोधी हैं किन्तु उनके संयोग से जल जैसे जीवनोपयोगी तत्त्व का निर्माण होता है। उसी प्रकार आत्मा और शरीर विरोधी है फिर भी इनका संयोग जन्म-मृत्यु की परम्परा को आगे बढ़ाता है।24
प्रवृत्ति और परिणाम को अलग नहीं किया जा सकता। जो परिणाम दृश्य है उनके पीछे कोई-न-कोई प्रवृत्ति होती है। आज की प्रवृत्ति अतीत का परिणाम है। उसी प्रकार वर्तमान की प्रवृत्ति का परिणाम है- भविष्य। वर्तमान अतीत से जुड़ा है इसलिये वह परिणाम भी है। वह कार्य और कारण दोनों है। वर्तमान का जितना महत्त्व है उतना ही अतीत का भी है।
पुनर्जन्म तब तक होता है जब तक क्रिया रूपी कारण और उसके परिणाम रूपी कर्म की सत्ता है। उसकी सत्ता समाप्त होने पर जन्म-मरण का चक्र भी रूक जाता है। जन्म और मृत्यु से साक्षात् करने का तत्त्वदर्शी पुरूषों ने अभ्यास किया। उन्होंने पाया जन्म-मृत्यु का प्रवाह चिरन्तन है। अनुभूति के बाद भगवान महावीर ने कहा - कुछ मनुष्यों को पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का संज्ञान होता है, कुछ को नहीं। पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का यह प्रश्न क्रियावादी, आत्मवादी के लिये ही नहीं, अपितु प्रत्येक चिंतनशील मनुष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है। पुनर्जन्म के साधक प्रमाण
भारतीय चिन्तकों ने अनेक युक्तियों से पुनर्जन्म को सिद्ध किया है
स्मृति- यह पुनर्जन्म की सिद्धि का एक बड़ा साक्ष्य है। तत्काल उत्पन्न शिशु में हर्ष, भय, स्तनपान आदि क्रिया देखी जाती है। उसने इस जन्म में हर्षादि की अनुभूति क्रिया और पुनर्जन्म
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