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आभामंडल जड़ और चेतन सभी पदार्थों का होता है। दोनों में अन्तर यह है कि पदार्थ का आभामंडल स्थिर और निष्क्रिय होता है, जब कि प्राणी का शुभ-अशुभ भावों के अनुरूप रूपान्तरित होता रहता है। आभामंडल रंगात्मक है। आभामंडल में कृष्ण या श्वेत आदि जिस रंग की प्रधानता होती है, व्यक्ति का दृष्टिकोण, स्वभाव, व्यवहार उसी प्रकार का बन जाता है।
लेश्या और निक्षेप नय
निक्षेप नय के आधार पर लेश्या के चार प्रकार किये जा सकते हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव। द्रव्य लेश्या के पुनः दो प्रकार हैं-कर्म लेश्या और नो-कर्म लेश्या । कर्मलेश्या का तात्पर्य है - सकर्मा प्राणी में पाई जाने वाली लेश्या और नो-कर्म लेश्या का अर्थ हैअकर्मा (निर्जीव प्राणी) से निकलने वाली रश्मियां | जिस प्रकार सजीव प्राणी के शरीर
निरन्तर लेश्या विकीर्ण होती हैं वैसे ही निर्जीव पदार्थ से भी रश्मि मंडल निकलता है जैसा कि पूर्व में संकेत किया जा चुका है। आभामण्डल का संबंध जड़ और चेतन दोनों हैं। प्राचीन आचार्यों ने नो-कर्म लेश्या के रूप में चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, आभरण, आच्छादन, दर्पण, कांगिणी आदि को परिगणित किया है। 30 यहां सूर्य- - चन्द्र आदि का तात्पर्य उनके विमानों से हैं, न कि सूर्य- चन्द्र देवता से है।
लेश्या - निक्षेप
नाम
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नो-कर्म लेश्या
जीव नो कर्म
स्थापना
द्रव्य
भाव
नो-अकर्म लेश्या
अजीव नो-कर्म
भव सिद्धिक
अभवसिद्धिक
द्रव्य - लेश्या और भाव लेश्या का संबंध
आगम साहित्य में कहीं-कहीं द्रव्य लेश्या के अनुरूप भाव परिणति का, कहीं पर द्रव्य लेश्या के विपरीत भाव परिणति का प्रतिपादन है। प्रश्न है, किसे द्रव्य लेश्या कहें और किसे भाव लेश्या ?
जन्म से मृत्यु तक एक रूप में रहने वाली द्रव्य लेश्या है। नारक - देवों में लेश्या का
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया