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जाता है। पद्म और शुक्ल में पहुंचते ही आवृत्ति कम हो जाती है। केवल तरंग दैर्ध्य रह जाता है। इसमें व्यक्तित्व का पूरा रूपान्तरण घटित हो जाता है। 28
व्यक्तित्व और लेश्या
श्याएं मनोभावों का वर्गीकरण मात्र नहीं, बल्कि चरित्र के आधार पर किये गये व्यक्तित्व के प्रकार हैं। मनोभाव और संकल्प आंतरिक तथ्य मात्र नहीं, वे क्रिया के रूप बाह्य अभिव्यक्ति चाहते हैं कि कौन व्यक्ति कैसा है ?
इसकी व्याख्या लेश्या के माध्यम से की जा सकती है। द्रव्य लेश्या का प्रतिबिम्ब है - बाह्य व्यक्तित्व और भाव लेश्या का प्रतिबिम्ब है- आन्तरिक व्यक्तित्व। चित्त की पर्यायें देश, काल परिस्थिति के साथ प्रतिक्षण बदलती रहती हैं। पर्यायों के इस वैविध्य या चित्त की विविध दशाओं का सही अंकन करने के लिये जैन दर्शन ने लेश्या का सिद्धांत प्रतिपादित किया है।
व्यक्तित्व संरचना में वंशानुक्रम, परिवेश, शरीर रचना, नाड़ी संस्थान, शरीररसायन आदि कई कारकों का योगदान होते हुए भी उपादान के रूप में लेश्या की अहं भूमिका रहती है। अशुभ लेश्या से शुभ लेश्या की ओर गति ही अच्छे व्यक्तित्व की पहचान हैं।
लेश्या और आभामण्डल
लेश्या या आभामण्डल व्यक्ति की मनोदशा, भावात्मक जगत् का प्रतिनिधि तत्त्व है। यह चेतना और शरीर दोनों की सह परिणति का परिणाम है। जीव और पुद्गल का संयोग सनातन है। आभामण्डल का सम्बन्ध तैजस् शरीर से है। आभामंडल तैजस् शरीर से निष्पन्न होता है। प्राणशक्ति का मूल स्रोत है - तैजस् शरीर । जैनागमों में आभामंडल शब्द का प्रयोग उपलब्ध नहीं है किन्तु लेश्या शब्द का नंदीचूर्णि में जिस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, वह विज्ञान सम्मत आभामण्डल है।
इस आगम में लेश्या शब्द की व्युत्पत्ति के प्रसंग में 'रस्सी' शब्द का उल्लेख है। 29 रस्सी यानी रश्मि। लेश्या का एक अर्थ है- विद्युत विकिरण । इस विकिरण का मूल स्रोत तैजस शरीर है और तैजस् शरीर का प्रेरक है- अतिसूक्ष्म कार्मणशरीर । कर्म संस्कारों के अनुरूप तैजस् शरीर के विकिरण होते हैं, प्राणधारा का विकिरण होता है, वही आभामंडल का निर्माण करता है।
क्रिया और कर्म - सिद्धांत
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