________________
तरंग दैर्ध्य और कंपन की आवृत्ति विपरीत प्रमाण से सम्बन्धित है अर्थात् तरंग दैर्घ्य के बढ़ने के साथ कम्पन की आवृत्ति कम होती है। तरंग दैर्ध्य के घटने पर आवृत्ति बढ़ती है। लाल रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक और बैंगनी रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे कम है।
बैंगनी रंग के बाहर की विकिरणों को पराबैंगनी और लाल रंग के बाहर की विकिरणों को अवरक्त कहा जाता है। इस वर्गीकरण में वर्ण की प्रधानता है किन्तु जितनी विकिरणें है, उनके लक्षण, आवृत्ति और तरंग दैर्ध्य में अन्तर है। यहां यह ध्यातव्य है कि छह लेश्याओं के वर्ण और दृश्यमान वर्ण-पट के रंगों में समानता है। विज्ञान सम्मत रंगों और लेश्या के रंगों का संबंध निम्नानुसार समझा जा सकता है-27 (क)
वर्णपट
लेश्या
पराबैंगनी से बैंगनी तक
कृष्ण या
नील
नील लेश्या
आकाशीय रंग
कापोत लेश्या
पीला
तेजोलेश्या
लाल
पद्म लेश्या
अवरक्त
शुक्ल लेश्या
प्रारंभिक तीन प्रकार के रंगों के विकिरण लघु तरंग वाले और पुनः पुनः आवृत्ति वाले होते है। वैसे ही कृष्ण, नील, कापोत लेश्याएं तीव्र कर्म बंधन में सहयोगी बनती हैं। शेष रंगों की तरंगें लंबी और कम आवृत्ति वाली होती हैं। उसी प्रकार तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या तीव्र कर्म बंधन में कारण नहीं बनती। लेश्याओं के साथ विकिरणों की तुलना स्थूल रूप से ही संभव है। जहां लेश्या के लक्षणों में वर्ण की प्रमुखता है वहां विकिरणों में आवृत्ति और तरंग की लम्बाई मुख्य है। लेश्या सिद्धांत में रंगों के तरंग दैर्ध्य और आवृत्ति सम्बन्धी वैज्ञानिक सिद्धांत की झलक है। कषायों के तीव्र-मंद प्रकम्पनों के आधार पर लेश्या के द्वारा न्यूनाधिक मात्रा में कर्म बंधन होता है।
आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी पुस्तक आभामण्डल में कहा - कृष्ण लेश्या में आवृत्ति ज्यादा, तरंग दैर्ध्य कम होता है। नील लेश्या में तरंग की लम्बाई बढ़ जाती है, आवृत्ति कम कापोत में तरंग दैर्ध्य है, आवृत्ति कम । तेजोलेश्या में आते ही परिवर्तन शुरू हो
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
134