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________________ 112.अ. ठाणांग 2; 41-62 तक 113. स्थानांग वृत्ति; पत्र, 38 114.पण्णवणा,पद; 22/1624- माया-अनार्जवमुपलक्षणत्वात् क्रोधोदेरपि परिग्रहः, माया प्रत्ययः करणं यस्याः सा माया प्रत्यया। 115. तत्त्वार्थवार्तिक; 6/5 116.स्थानांग; 2/17-18 की टीका आयभावं वंकणता चेव त्ति आत्मभावस्या प्रशस्त वंकनता - वक्रीकरणं प्रशस्तत्वोपदर्शनता आत्मभाव वंकनता, वंकनानां च बहुत्व विवक्षायां भाव न विरुद्धः सा च क्रिया व्यापारत्वात् । 117. वही - ज्ञानदर्शनादिषु निकृतिर्वञ्चनं मायाक्रिया । परभाव वंकणता चेव ति परभावस्य वंकनता वंचनता या कूटलेख करणादिभिः सा परभाव वंकनतेति, यतो वृद्ध व्याख्येयं तं तं भावमायरइ जेण परो वंच्चिज्जिइ कूड लेहकरणई हिंति। 118. भगवई वृत्ति;1/71 119. ठाणं; 2/37 120. झीणी चर्चा; 6/9 121. ठाणं; 4/102-103 122. आप्टे; To Deny 123. वही; To Decline, rebuse, reject. 124. तत्त्वार्थवार्तिक; 6/5 संयम घाति कर्मोदय वशादनिवृत्तिरप्रत्याख्यान क्रिया। 125. सूत्रकृतांग भाग द्वितीय, 4/17 126. सूत्रकृतांग भाग द्वितीय, पृ. 675 127. भगवई, 7/27-28 128. भगवती वृत्ति; 7/28 ज्ञानाभावेन यथावद् परिपालनात् सुप्रत्याख्यानत्वा भाव: । 129. भगवती जोड़; 2 /115/19-29 116 130. भगवती भाष्य; 7/2/27-33 पृ.341 कतिविहे णं भंते! पच्चक्खाणे पण्णत्ते ? गोमा ! दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा - मूलगुण पच्चक्खाणे ये, उत्तर गुण पच्चक्खाणे य। अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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