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131. प्रवचन सार; 208,209
132. (क) रत्नकरण्डक श्रावकाचार, 66
मद्यमांसमधु त्यागै, सहाणुव्रत पञ्चकम् । अष्टौ मूल गुणानाहुर्गृहिणा श्रमणोत्तमाः।
(ख) भगवई खण्ड, द्वितीय, पृ. 342
133. ठाणं सूत्र; 10/101, पृ. 994 -996
134. सूत्रकृतांग निर्युक्ति; 1 / 14 / 129 - मूल गुणे पंचविहो, उत्तरगुण बारस विहो ।
135. भगवती आराधना; 2081 सर्वार्थ सिद्धि; 7/21
136. तत्त्वार्थसूत्र, भाष्य वृत्ति; 7/16
137. महापुराण; 10 / 165
138. भगवई; 7/35
139.वही; 7/36
वाणं भंते! किं मूलगुण पच्चक्खाणी ? उत्तरगुण पच्चक्खाणी ? अपच्चक्खाणी ? गोयमा ! जीवा मूलगुण पच्चक्खाणी वि उत्तर गुण पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि।
140. भगवई खण्ड द्वितीय, 7/40
141. भगवती जोड; 2 / 102, 18/20
142. ठाणं; 10/93
143. भगवई, 1, 1/34-35
144. स्थानांग वृत्ति, पत्र; 38
145. तत्वार्थवार्तिक; 6/5
146. सर्वार्थसिद्धि टीका; 8 / 1 /375 बारह अणुवेक्खा; गा. 48
राजवार्तिक; 8/28/514
147. मज्झिमनिकाय; 2/5/5 पृ. 400
148.ठाणं; 10/74
149. जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन; भा. 2, पृ. 40
क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप
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