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77. भगवती वृत्ति; 5/6/134 78. भगवती भाष्य खण्ड; 1 पृ. 164 79. वही, खण्ड; 2 7/6-7 80. वही खण्ड; 1, 1/370-371 81. वही; 1/8/371 82. पातञ्जल योग दर्शन, 2/12 83. भगवई वृत्ति; 1/372 83. (अ) भगवई भाष्य; 165 84. भगवई; 9/251-252 85. भगवती वृत्ति; 1/372 86. (क) भगवती वृत्ति; 1/372
(ख) उद्धृत भगवती भाष्य 166 87. भगवती भाष्य; पृ.166 88. भगवती; 1/6/276 - 279 89. स्थानांग; 60 की टीका 90. (क) सूयगडो; -1, पृ.54
(ख) इन्द्रियवादी चौपाई; ढाल 9.15
(ग) सूयगडो; - 2/4/9-17 91. सूयगडो; 1 पृ. - 52
चूर्णि; पृ. 37, कथं पुनरूपचीयते ? उच्यते, यदि सत्त्वश्च भवति सत्त्वसंज्ञा च सञ्चिन्त्य
जीवताद् व्यपरोपणं प्राणातिपातः। 92. वृत्ति; पत्र 39, सूयगडो 1 पृ.53
परिज्ञोपचितादस्याय भेदःतत्र केवलं मनसा चिन्तनमिह त्वरेण-व्यापाद्यमाने
प्राणिन्यनुमोदनमिति। 93. पण्णवणा, पद; 22 94. (क) भगवई भाष्य; 8/6/258-270 (अंगसुत्ताणि - 2) 94. (ख) क्रियाकोश पृ. 175 94 (ग) उद्धृत भगवती भाष्य पृ. 32 114
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया