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59. भगवती; 1/1/48 60. पण्णवणा; पद 22 सू.1568 टीका
सर्व विरति, अविरति, विरति-अविरति। उपरतो-देशतः सर्वतो वा सावद्य योगाद्विरत : नो परतोऽनुपरतः कुतश्चिदप्य निवृत्त इत्यर्थःतस्य कायिकी अनुपरत कायिकी क्रियते वर्तते, इयं प्रति प्राणि निवर्तते, इयमविरतस्य वेदितव्या, न देश
विरतस्य सर्व विरतस्य वा। 61. स्थानांग वृत्ति; पत्र, 38 62. भगवई; 16/1 63. पण्णवणा; पद. 22/1569 टीका 64. स्थानांग; 2/7 65. भगवई वृत्ति; 3/136 66. पण्णवणा; पद 22 सू.1569 टीका 67. भगवई; 3/135 68. पण्णवणा; पद 22 सू.1569 टीका 69. स्थानांग वृत्ति; पत्र 38, प्रद्वेषो-मत्सरस्तेन निर्वृत्ता प्राद्वेषिकी। 70. (क) तत्त्वार्थवार्तिक; 6/5 " (ख) वही; 6/5 71. गांधीवाणी पृ.37 72. भगवई.वृत्ति 3/137 73. (क) स्थानांग; 2/60 की टीका
.. परितापनं-ताडनादि दुःख विशेष लक्षणं तेन निर्वृत्ता पारितापनिकी। 73. (ख) भगवई 3/3 टीका-पारितापनं - परितापः-पीडाकरणम्, तत्र भवा, तेन वा निर्वृता,
तदेव वा पारितापनिकी। 73. (ग) क्रियाकोश; पृ. 66
तप्पजाय विणासो, दुक्खपाओ य संकिलेसो य।
एस वहो जिण भणिओ, वजेयव्वो पयत्तेणं।। 74. पण्णवणा, पद; 22 75. पण्णवणा, पद; 22 76. भगवती भाष्य; 5/6/134 पृ.180-181 क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप
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