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________________ से वैमानिक तक इसी प्रकार ज्ञातव्य है । राशि युग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में बारह गुणस्थान तक के जीवों का ही समावेश है। राशि त्र्योज, द्वापर और कल्योज के सम्बन्ध में राशि युग्म - कृत युग्म की तरह समझना चाहिये । मात्र क्रिया की अपेक्षा नारक, तिर्यञ्च, देवगति के जीव नियमत: सक्रिय होते है। मनुष्य तेरहवें गुणस्थान तक सक्रिय, चौदहवें में अक्रिय हैं। पाप कर्म के बंधन की अपेक्षा सभी जीव सक्रिय हैं। मनुष्य 10 वें गुणस्थान तक सक्रिय है। ग्यारहवें से तेरहवें तक अक्रिय है। ऐर्यापथिक क्रिया की अपेक्षा 11-12-13 वें गुणस्थान तक सक्रिय है। परिस्पंदन क्रिया की अपेक्षा चौदहवें गुणस्थान के अतिरिक्त सभी जीव सक्रिय है। क्रिया संपन्न जीव कर्म-बंधन से मुक्त नहीं हो सकता। क्रिया और करण स्थानांग में 'क्रियते येन तत्करणं' कहकर क्रिया के साधन को करण कहा है। 238 जितने प्रकार के करण हैं, उतने ही प्रकार क्रिया के है। जैन दर्शन में क्रिया के करण को कर्म-बंध का हेतु कहा है, उसी प्रकार गीता में भी करण को कर्म-संग्रह का कारण बतलाया है। 239 करण के दो प्रकार हैं- बाह्य और आभ्यान्तर । बाह्य क्रिया श्रोत्रेन्द्रिय आदि से होती है । अन्तस्थ क्रिया बुद्धि के आधार पर होती है। इच्छा पूर्वक जो क्रिया की जाये, वह कर्म है। 240 प्राणी मात्र कर्म से आबद्ध है किन्तु जैसा कि कहा गया है 'योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः । सर्व भूतात्मभूतात्माकुर्वन्नपि न लिप्यते । ' सम्यद्गर्शन प्राप्ति उपाय रूप योग से युक्त, विशुद्ध आत्मा, विजितात्मा, विजितदेह, जितेन्द्रिय- ऐसी आत्मा क्रिया करते हुए भी कर्मों से लिप्त नहीं होता | 241 यह क्रिया ईर्यापथिक क्रिया के समकक्ष है। जैसे-जैसे कषाय क्षीण होते है, आत्मा शुद्ध होती है, अक्रिया की अवस्था आती है। आत्मा और पुद्गल के सम्बन्ध का कारण क्रिया है। अक्रिया में सम्बन्ध सेतु टूट जाता है। चौदहवें गुणस्थान में सम्पूर्ण अक्रिया की स्थिति आ जाती है उनके कर्म उसी प्रकार क्षय हो जाते हैं जैसे अग्नि में डाले हुए सूखे तृणमूलक और गरम तवे पर गिरे जल-बिन्दु । प्रवृत्ति - निवृत्ति का संतुलन वृत्तात्पर्य है कायिक, वाचिक और मानसिक क्रियाएं | निवृत्ति का अर्थ है- योगजन्य क्रियाओं का अभाव। सामान्यत: क्षण मात्र के लिये भी ऐसी अवस्था नहीं अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया 108
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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