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तांत्रिक क्रिया
तंत्र-यह मंत्र-शास्त्र का तीसरा आयाम है। तंत्र-साधना का प्रचलन यंत्र साधना के पश्चात् हुआ है। मंत्र-साधना को सरल एवं सुबोध बनाने के लिये चित्रात्मक रूप में यंत्रों के अभाव में केवल पदार्थ के आधार पर ही सिद्धि प्राप्त करने की पृष्ठभूमि में, तंत्रसाधना की प्रस्तुति हुई है। तंत्र शास्र का अभिमत है कि योगी को जब आठ सिद्धियां प्राप्त होती है तब उसे देहसिद्धि की भी उपलब्धि सहज हो जाती है। देहसिद्धि का तात्पर्य यह है कि उसका शरीर आकर्षक, मोहक, रोगों से अनाक्रान्त और वज्र की तरह दृढ़ बन जाता है। देह-सिद्धि के दो प्रकार हैं- सापेक्ष देहसिद्धि और निरपेक्ष देहसिद्ध। सापेक्ष देहसिद्धि असम्यक होती है और निरपेक्ष देहसिद्धि सम्यक होती है। तंत्र में लौकिक और पारलौकिक सभी विषयों का समावेश है। व्यक्ति की श्रद्धा भिन्न-भिन्न होती है। कुछ मंत्र-जप में विश्वास करते हैं तो कुछ यंत्र-साधना और तंत्र-साधना में। मांत्रिक क्रियाएं हों, यांत्रिक या तांत्रिक क्रियाएं उनके पीछे इष्टावाप्ति का लक्ष्य प्रमुख होता है। सक्रियता - अक्रियता युग्म पद की मीमांसा
अनेक जीव एक साथ में उत्पन्न होते है। उसे राशि-युग्म कहते हैं। राशि के दो भेद होते हैं- युग्म और ओज। सम संख्या (2,4,6,8) को युग्म और विषम संख्या (1,3,5,7,9) को ओज कहा जाता है। ठाणं 14/36 टि. पृ. 515
युग्म के दो भेद हैं- कृतयुग्म और द्वापर युग्म ओज के दो भेद - त्र्योज और कल्योज। इनकी व्याख्या इस प्रकार है1. कृतयुग्म- राशि में चार-चार घटाने पर शेष चार रहे, जैसे- 8,12, 16,
20 ...। 2. द्वापर युग्म- राशि में से चार घटाने पर शेष दो रहे, जैसे- 6, 10, 14,
18...। 3. त्र्योज युग्म– राशि में से चार-चार घटाने पर शेष तीन रहे, जैसे- 7,11,
15, 19 ...। 4. कल्योज-राशि में से चार-चार घटाने पर एक शेष रहे, जैसे- 5, 9, 13,
___17, 21... ।
राशियुग्म एकेन्द्रिय जीव सक्रिय होते हैं अक्रिय नहीं। इसी प्रकार सलेशी, भवसिद्धिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय सभी सक्रिय होते है। नारकी क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप
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