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सफलता मिलेगी। गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सूत्रों से समणीजी को सफलता मिली और उनका साहस भी बढ़ा।
इसी संदर्भ में ध्वनि के प्रभाव की विलक्षणता भी अद्भुत है। 'हाँ' की ध्वनि से फेफड़े की तकलीफ ठीक होती है। सीने पर इसका उचित प्रभाव पड़ता है। ‘हीं' ध्वनि दर्शन-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित करने से दृष्टि शुद्धि और मुखमंडल प्रभायुक्त होता है। 'ह' ध्वनि से लीवर की स्वस्थता बढ़ती है। हैं' ध्वनि कण्ठ को स्वस्थ रखती है। 'हः' की ध्वनि सिरदर्द को दूर करती है तथा स्मरण शक्ति को भी बढ़ाती है। इसी प्रकार उद्दण्डता निवारण के लिए शशांकासन, व्यसन मुक्ति के लिए अप्रमाद केन्द्र पर ध्यान, भय मुक्ति के लिए आनंद-केन्द्र पर ध्यान, ज्यादा कटुभाषी के लिए कंठकूप पर ध्यान तथा क्रोध शांति के लिए शशांकाआसन-ये योग के, रासायनिक परिवर्तन के अनूठे रहस्य हैं। नवरात्र आध्यात्मिक अनुष्ठान
नवरात्र अनुष्ठान का समय सौर विकिरण की दृष्टि से साधना के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। मनुष्य को इस समय का लाभ उठाते हुए अपनी शक्ति का विकास करना चाहिए पर शक्ति विकास दूसरों की भलाई के लिए हो, किसी के अनिष्ट के लिए नहीं।
नवरात्र अनुष्ठान में दुर्गा को इष्ट मानने वाले हों अथवा चाहे वे अर्हत् को इष्ट मानने वाले हों, सभी व्यक्ति जीवन में नौ शक्तियों के विकास की आराधना करते हैं, वे शक्तियां हैं१. श्री संपन्न बनना २. लज्जा संपन्नता अर्थात् आत्मानुशासन का विकास ३. बुद्धि का विकास ४. धैर्य की शक्ति का विकास ५. शक्ति का विकास ६. शांति का विकास ७. आनंद का विकास ८. ज्योतिर्मय जीवन ६. जीवन में पवित्रता का विकास
नौ दिवसीय आध्यात्मिक अनुष्ठान का यह उपक्रम आत्मशुद्धि और ऊर्जा के विकास का माध्यम बने। इस दृष्टि से आश्विन शुक्ला एकम् से प्रारंभ कर निरन्तर नौ दिनों तक यह प्रयोग किया जाये। मत्रं-कोविद-आचार्य, आचार्य श्री
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सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु / ६३