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रहे। शरीर के चारों ओर अभेद्य कवच का निर्माण हो रहा है, ऐसा संकल्प पुष्ट करें। इस प्रकार शरीर के चारों ओर तीन वलयों का निर्माण करें। ५. आइच्चेसु अहियं पयासयरा • प्रेक्षा
चाक्षुस केन्द्र प्रेक्षा .
मंत्र
आइच्चेसु अहियं पयासयरा प्रयोग विधि आइच्चेसु अहियं पयासयरा-इस पद्य का दर्शन-केन्द्र पर अर्थात् दोनों भृकुटियों के और दोनों आँखों के मध्य भाग में ध्यान करना। लाभ प्राणऊर्जा सक्रिय रहती है।१२
निष्कर्ष
___ मानव शरीर का निर्माण विभिन्न तत्त्वों से हुआ है। उसमें दो चीजें काम कर रही हैं। सूर्य शक्ति से हमारे अन्दर विद्युत शक्ति काम कर रही है। इसी प्रकार दूसरा संबंध है सोमरस प्रदाता चंद्रमा से। इससे 'मेग्नेटिक करेन्ट' काम कर रहा है। इस 'मेग्नेटिक करेन्ट' (चुम्बकीय विद्युतधारा) की सहायता से मानव के शरीर और उसकी मांसपेशियों तक पहुँचा जा सकता है किन्तु मन की अनंत गहराई और द्रव्य का शक्ति-बीज इस करेन्ट से परे है। इसके लिए हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों और महात्माओं ने दिव्य शक्ति को आविष्कृत किया। वह दिव्यशक्ति दिव्य कर्ण है। इससे हम सामान्य मन को सुन सकते हैं और सुना भी सकते हैं। जिस प्रकार समुद्र में 'केबिल' डालकर एक-दूसरे के संवाद को दूर तक पहुँचाया जा सका और बाद में इसी से तार का और फिर बेतार-के-तार का मार्ग भी आविष्कृत हुआ। आज तो चन्द्रलोक तक अपनी बात प्रेषित कर सकते हैं, वहां से बात प्राप्त कर सकते हैं। 'सेटेलाइट' से हम सुपरिचित हैं, समस्त संवाद उसमें संग्रहित हो जाते हैं और फिर वहां से उन्हें अलग-अलग स्थानों को भेजा जाता है। फोन, मोबाइल आदि इसी विद्या के परिणाम हैं। आशय यह है कि हम जो शब्द बोलते हैं उन्हें पकड़ा जा सकता है, पुनः प्रस्तुत किया जा सकता है, उन्हें गन्तव्य तक पहुँचाया जा सकता है। विश्वभर की सभी ध्वनियां आकाश तरंगों में मिलकर सर्वत्र फैल चुकी हैं-वे अब भी हैं, उन्हें पकड़ा जा सकता है। यह भी संभव है
आइच्चेसु अहियं पयासयरा / ५१