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• प्रयोग विधि पांचों अवयवों पर इस मंत्र का न्यास करें।
ॐ भ्रू युग्म न नासाग्र . मः ओष्ठ युगल सि कर्णपाली
द्धं ग्रीवा • परिणाम
शरीर रक्षा और कवच ३. ॐ णमो सिद्धाणं
दर्शन-केन्द्र (आज्ञा-चक्र) पर बाल सूर्य (अरुण रंग) के साथ इस मंत्र का जप करने से आन्तरिक शक्तियों का जागरण होता है। सूर्य और मंगल ग्रह का प्रतिकूल प्रभाव भी इस जप से अनुकूल और उपयोगी हो जाता है। श्वास के साथ इस मंत्र का जप करने से मन की सुप्त शक्तियां जागृत होती हैं। णमो सिद्धाणं का जप शाश्वत आनंद की अनुभूति के लिए किया जाता है। शारीरिक दृष्टि से अवलोकन करें तो दर्शन-केन्द्र पर 'ॐ णमो सिद्धाणं' अरुण रंग में तन्मयता से जपने से रक्त विकार मिटते हैं, रक्त के लाल कण हिमोग्लोबीन बढ़ने लगते हैं, नाड़ी संस्थान शुद्ध होता है, दिल (हाट) सशक्त बनता है, साधक स्फूर्ति, चुस्ती, क्षमता व शक्ति की वृद्धि का अनुभव करता है।
अरुण रंग शक्ति वर्धक होने के साथ-साथ कर्म ग्रंथियों का भेदक भी है। जिन्हें वात और कफ के कारण कोई शिकायत है वे प्रातः और सायं णमो सिद्धाणं' की अरुण रंग की परिकल्पना के साथ दो माला फेरें। इस अभ्यास संपन्नता के पन्द्रह मिनट बाद णमो आयरियाणं' की पीले रंग की परिकल्पना के साथ एक माला अवश्य फेरें। ज्योतिष शास्त्रानुसार सिंह, वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी के लिए 'ॐ हीं णमो सिद्धाणं' नित्य जपने योग्य अनुकूल मंत्र है।१० ४. ॐ हीं णमो सिद्धाणं (सुरक्षा कवच)
बाहरी आघातों, प्रत्याघातों, अनिष्ट विचारों से अपनी सुरक्षा के लिए मंत्र का कवच बनाया जाता है वैसे ही प्राण ऊर्जा का कवच बनाया जा सकता है। विधि
दर्शन-केन्द्र पर ध्यान करें। 'ॐ हृीं णमो सिद्धाणं' का जप करें। बाल सूर्य को सामने देखें। उसकी रश्मियां दर्शन-केन्द्र पर जा रही हैं, ऐसा सोचें। शरीर के प्रत्येक अवयव को प्राणऊर्जा से परिपूर्ण कर रही है। मंत्र का जप निरन्तर चलता ५० / लोगस्स-एक साधना-२