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कि आकाश में फैली हुई अरिहंतों और तीर्थंकरों की वाणी भी एक दिन विज्ञान की सहायता से हम सुन सकें। इसी धरातल पर अध्यात्म शक्ति की अतिविकसित अवस्था में हम मंत्र के (बेतार-के-तार) माध्यम से अरिहंतों और तीर्थंकरों का साक्षात्कार कर सकते हैं।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जिस प्रकार चिंतामणि रत्न से वांछित फल की प्राप्ति होती है उसी प्रकार अरिहंत व सिद्धों के ध्यान से उनके गुणों का स्मरण करने से चित्त शुद्धि द्वारा अभिलषित फल की प्राप्ति होती है।
संदर्भ १. साधना और सिद्धि-पृ./१८ २. सुप्रभातम्-पृ./२८३ ३. अप्पाणं सरणं गच्छामि-पृ./५७ ४. मन का कायाकल्प-पृ./४६ ५. एसो पंचणमोक्कारो-पृ./६४ ६. मंत्र एक समाधान-पृ./२८ ७. वही-पृ./१६१ ८. वही-पृ./२७ ६. ऐसोपंचणमोक्कारो-पृ./२१७ १०. आपकी राशि आपका समाधान ११. भीतर की ओर-पृ./२६२ १२. भीतर का रोग भीतर का इलाज-खण्ड, एक शारीरिक चिकित्सा-पृ./८१
५२ / लोगस्स-एक साधना-२