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तो परभव में। इसलिए भगवती सूत्र टीकाकार ने कहा है-“मोक्ष का सच्चा कारण दर्शन ही है अतएव ज्ञान की अपेक्षा दर्शन का ही प्रयत्न करना चाहिए और दर्शन के बाद ज्ञान के विस्तार का प्रयत्न होना चाहिए। ज्ञान-दर्शन के सम्यक् होने पर ही चारित्र सम्यक चारित्र कहा जाता है।"१
भव्यजीव सबसे पहले कृष्ण पक्षी से शुक्ल पक्षी बनते हैं उसके बाद सम्यक्त्वी, परित संसारी, सुलभ बोधि, आराधक', चरमशरीरी होकर मुक्त हो जाते
साधक अर्हत स्तुति के माध्यम से अपनी आत्म-शक्तियों का जागरण करता है। सभी धर्मशास्त्रों में ऐसे सहस्रों आख्यान या दृष्टान्त मिलते हैं। जहाँ अडोल श्रद्धा के बल पर व्यक्ति ने असंभव या महादुष्कर कार्य कर लिए अथवा अनिष्टकारी कार्यों के फल से मुक्ति पा ली। वास्तव में सिद्धियों के स्वस्तिक रचाने वाली महाशक्ति का नाम ही है-श्रद्धा। कितनी सच्चाई है निम्नोक्त पंक्तियों में
कौन कहता है कि श्रद्धा के जुबां होती है।
यह तो वो चीज है जो आँखों से बयां होती है। इतिहास विश्रुत कुछ दृष्टान्त जो प्रेरक और श्रद्धा बल को बलवत्तर बनाने वाले हैं, यथा• भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास से भक्त प्रहलाद को धरती के कण-कण में
भगवान के दर्शन होने लगे और हिरण्यकश्यप की चुनौती पर स्तंभ में से भगवान विष्णु नृसिंहावतार के रूप में प्रकट हो गये। बाल भक्त ध्रुव ने अविचल भक्ति और तपस्या से भगवान का स्मरण किया
और उसने नक्षत्र लोक में शाश्वत ध्रुवतारे का स्थान पा लिया। तीर्थंकर महावीर के दर्शनार्थ जाते मार्ग में संकट उत्पन्न होने पर सेठ सुदर्शन ने जब भगवान का स्मरण किया तो अर्जुनमाली का खड्ग सहित हाथ ऊँचा का ऊँचा रह गया और वह कोई घातक प्रहार नहीं कर सका। महासती सीता ने जब अपने शील पर आस्था संकट देखा तो वह अग्नि में प्रवेश कर गई और अग्नि के स्थान पर जलधारा प्रवाहित हो गई। महासती सुभद्रा ने कच्चे धागे में छलनी बांधकर कुएं का पानी खींचा व उस पानी को छांटकर चम्पानगरी के द्वार मात्र आस्था के बल पर खोल दिये।
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जघन्य एक तथा उत्कृष्ट १५ भवों के भीतर मोक्ष जाने वाला
२ / लोगस्स-एक साधना-२