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राजा हर्षदेव ने मानतुंग आचार्य को ४८ लोहे की बेड़ियों वाली श्रृंखला से जकड़ दिया व कोठरी में बंद कर ताले लगा दिये। उस समय मानतुंग सूरि ने अपने आराध्यदेव भगवान ऋषभ (प्रथम तीर्थंकर) की स्तुति प्रारंभ की और ज्यों-ज्यों वे एक-एक पद बोलते गये एक-एक कड़ी टूटती गई और पूरी स्तुति समाप्त होते ही सारी कड़ियां टूट गईं, वे स्वतंत्र होकर बाहर आ गये। वह पद्य रचना भक्तामर के नाम से वर्तमान में भी उपलब्ध है।
इसी प्रकार श्रावक शोभजी की बेड़ियों का टूटना, साध्वी रूपांजी का खोड़ा टूटना, साध्वीप्रमुखा नवलांजी का द्वार खुलना, अंगारों की वर्षा का थमना आदि अनेकों घटना प्रसंग आस्था की पुष्टि के ज्वलंत प्रमाण हैं। - श्रद्धा और आस्था का फलितार्थ पाने के लिए एक ही तथ्य ध्यान में रखना होता है कि श्रद्धा अविचल हो, अडोल हो, निष्कंप हो, निसंशय हो। ऐसा तभी हो सकता है जब श्रद्धा करने वाला व्यक्ति निर्मल चित्त का सहज-सरल स्वभाव वाला हो। ___उपरोक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रद्धा के बल पर व्यक्ति भयंकर कष्टों को पारकर अथवा राग-द्वेष के बंधनों से मुक्त होकर शांति, समाधि व सुखों की प्राप्ति कर सकता है। परन्तु वह श्रद्धा परम दुर्लभ है इसलिए आत्मार्थी साधक बोधि लाभ की अभिलाषा करता है। जैसा कि उत्तराध्ययन में कहा गया है
चत्तारि परमंगाणि, दुल्हाणी य जंतुणो।
माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि य वीरयं ॥ किसी प्राणी के लिए चार स्थाई महत्त्व की बातों की प्राप्ति दुर्लभ है१. मनुष्यता २. अध्यात्म वाणी का श्रवण ३. श्रुत में श्रद्धा ४. संयम साधना में शक्ति का नियोजन
बोधिलाभ की स्थिरता के लिए कुछ प्रश्न मननीय हैं जैसे-बोधि क्या है? बोधि की महत्ता क्या है? बोधि कहाँ है? बोधि प्राप्ति के साधक-बाधक तत्त्व कौन-कौन से हैं? बोधि को स्थिर रखने में कौन-कौन से उपाय हैं? तथा जीवन में बोधि का इतना महत्त्व क्यों है? इत्यादि। बोधि क्या है? __मुख्यतः बोधि (सम्यक्त्व) के दो प्रकार हैं१. निश्चय सम्यक्त्व २. व्यवहारिक सम्यक्त्व
लोगस्स के संदर्भ में बोधि लाभ की महत्ता / ३
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