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लाभ
शत्रु का भय दूर होता है । संग्राम में या मुकद्दमें में विजय होती है 1 ॥ इति तृतीय मंडलं ॥
४. मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं कुंथुं अरं च मल्लिं वंदे मुणि सुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च मम मनोवाञ्छित पूरय- पूरय ह्रीं स्वाहा ॥
विधि
इस मंत्र की साधना के लिए भी ११,००० जप करने पड़ते हैं । साधना करते समय ब्रह्मचर्य का पालन करें एवं असत्य न बोलें । यथा संभव पीले रंग की माला से पूर्वाभिमुख हो यह जप करना चाहिए ।
लाभ
मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है। भूत-प्रेत की बाधा दूर होती है । लिखकर गले में बांधने से ज्वर पीड़ा भी दूर होती है ।
॥ इति चतुर्थ मंडलं ॥
५. मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं एवं मए अभिथुआ विहूरयमला पहीणजरमरणा । चउविसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु स्वाहा ॥
विधि
५,५०० बार इस मंत्र का जप करने से इसकी सिद्धि होती है । साधना करते समय एकासन व ब्रह्मचर्य की साधना तो आवश्यक है ही, असत्य भाषा का भी प्रयोग न हो । पूर्व दिशा की ओर हाथ जोड़कर खड़े हों तथा मुख ऊपर आकाश की तरफ रहे ।
लाभ
भविष्य के विषय में अपूर्व अनुभव प्राप्त होते हैं । सब प्रकार के सुख मिलते हैं। व्यक्ति सबको प्रिय लगता है 1
॥ इति पंचमं मंडलं ॥
६. मंत्र
ॐ ह्रीं अंबराय कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरोग्ग- बोहि लाभं
समाहिवरमुत्तमं
दिंतु स्वाहा ॥
१३६ / लोगस्स - एक साधना-२