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लोगस्स कल्प
१. मंत्र
ऐं ॐ ह्रीं एं लोगस्स उज्जोगयरे धम्म तित्ययरे जिणे । अरहंते कित्तइस्सं चउविसंपि केवली - मम मनस्तुष्टि कुरु कुरु ॐ स्वाहा ॥
विधि
इस मंत्र को सूर्योदय के समय काउसग्ग की मुद्रा में मौन सहित १०८ बार जपें । मुँह पूर्व दिशा की ओर रहे । एकासन और ब्रह्मचर्य व्रत रखें। निरंतर चौदह दिन तक जप करने से इसकी साधना पूरी होती है । इस साधना काल में यथासंभव रात्रि संवर करें, सोते समय संवर कर सकते हैं अथवा भूमि या पट्टे के सिवाय अन्य गद्दे आदि पर न सोएं - ऐसा विधान मिलता है।
लाभ
आत्म-शक्ति का संचय होता है । मान, सम्मान, धन, संपत्ति की प्राप्ति के साथ-साथ सब प्रकार के संकट दूर होते हैं ।
॥ इति प्रथमं मंडलं ॥
२. मंत्र
ॐ क्रां क्रीं ह्रां ह्रीं उसभमजियं च वंदे, संभवमभिनंदणं च सुमहं च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे स्वाहा ॥
विधि
इसे उत्तराभिमुख हो पद्मासन में १०८ बार जपने का विधान है। सोमवार सात दिन तक मौन एवं एकासन रखें । ब्रह्मचर्य पालन करें। झूठ का प्रयोग न करें ।
लाभ
गृह-कलह और राज-काज के झगड़ों की चिंताओं से मुक्ति मिलती है । व्यन्तर आदि उपद्रव नष्ट होते हैं ।
॥ इति द्वितीय मंडलं ॥
३. मंत्र
ॐ ह्रीं झं झीं सुविहिं च पुप्फदंतं सीयल सिजंस वासुपूज्जं च 1 विमलनणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि स्वाहा ॥
विधि
लाल रंग की माला से १०८ बार प्रतिदिन जपें । ब्रह्मचर्य का पालन करें एवं असत्य न बोलें। इस प्रकार २१ दिन जपने से इसकी सिद्धि होती है।
लोगस्स कल्प / १३५