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का कोई एक गीत बोलना। ऐसे क्रमशः दूसरे दिन दूसरे तीर्थंकर भगवान के नाम की २१ माला गिनना। ऐसे चौबीसवें दिन तक क्रमश एक-एक तीर्थंकर की २१-२१ माला गिनना। शेष क्रियाएं पहले दिन के समान करना। पच्चीसवें दिन 'नमो सव्व सिद्धाणं' की इक्कीस मालाएं गिनना, शेष क्रिया पूर्ववत्। १६. कल्याण तप०
प्रत्येक तीर्थंकर के पांच कल्याणक होते हैं१. च्यवन (गर्भ में आना) २. जन्म ३. दीक्षा ४. केवल-ज्ञान ५. निर्वाण
इन सबकी गणना करने पर चौबीस तीर्थंकरों के १२० कल्याणक होते हैं। इन १२० कल्याणकों की तिथियों में इस तप का साधक उपवास करता है या एकासन करता है। जो साधक उपवास के द्वारा इन पंच कल्याणक तिथियों की आराधना करना चाहता है वह मार्गशीर्ष शुक्ला दसम् और एकादशमी का बैला करके प्रारंभ करता है। जो साधक एकासन के द्वारा इन पंच कल्याणकों की आराधना करना चाहता है, वह मार्गशीर्ष शुक्ला दसमी को आयम्बिल करता है और एकादशी को उपवास करता है। एक दिन में एक कल्याणक हो तो एकासन करने वाला साधक एकासन करता है। एक दिन दो कल्याणक हो तो नीवी करता है। एक दिन में तीन कल्याणक हो तो आयम्बिल करता है। एक दिन में चार कल्याणक हो तो उपवास करता है।
उपवास करने वाले साधक की चर्या इस प्रकार है
एक दिन में एक कल्याणक हो तो उपवास करता है। एक दिन में दो, तीन कल्याणक हो तो वह उसकी आराधना दूसरे वर्ष में करता है।
जप
च्यवन कल्याणक के दिन 'अर्हते नमः' इस मंत्र की २० माला या दो हजार जप करता है।
दीक्षा कल्याणक के दिन 'नाथाय नमः' इस मंत्र को दो हजार जप करता है।
केवल-ज्ञान के दिन 'सर्वज्ञाय नमः' इस मंत्र को दो हजार जप करता है। निर्वाण कल्याणक के दिन ‘पारंगताय नमः' इस पद को दो हजार जप करता है।
* किस महिने में कौन से तीर्थंकर का कौन-सा कल्याणक है, इसके लिए देखें परिशिष्ट-१/२
लोगस्स और तप / १०५