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प्रयोग विधि प्रथम आरोह क्रम द्वितीय अवरोह क्रम
तृतीय आवर्त क्रम प्रथम आरोह क्रम ____ शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करें। मेरुदण्ड सीधा रहे। सुखासन, वज्रासन अथवा पद्मासन-जिस आसन में आसानी से बैठ सकते हैं उस एक आसन का चुनाव करें। ब्रह्ममुद्रा या ज्ञानमुद्रा लगाएं। आँखें कोमलता से बंद। दो-तीन दीर्घ श्वास के साथ प्रयोग को प्रारंभ करें।
प्रथम आरोह क्रम में नीचे से एक-एक चैतन्य केन्द्र पर लोगस्स के एक-एक पद्य का स्तवन करें। सबसे पहले चित्त को शक्ति केन्द्र (मूलाधार चक्र) पर ले जाएं। लोगस्स का प्रथम पद्य-लोगस्स से केवली तक बोलें, कुछ क्षण रूकें, वहाँ पर इस पद्य का अनुचिंतन करें। इस विधि से दूसरा पद्य स्वास्थ्य केन्द्र (स्वाधिष्ठान-चक्र) पर, तीसरा पद्य तैजस-केन्द्र (मणिपूर-चक्र) पर, चौथा पद्य आनंद-केन्द्र (अनाहत-चक्र) पर, पांचवां पद्य विशुद्धि केन्द्र (विशुद्धि चक्र) पर, छठा पद्य दर्शन-केन्द्र (आज्ञा-चक्र) पर, सातवां पद्य ज्ञान-केन्द्र (सहस्रार-चक्र) पर बोलें। दूसरा अवरोह क्रम
दूसरे अवरोह क्रम में सातवां पद्य पुनः ज्ञान-केन्द्र पर, छठा दर्शन-केन्द्र पर, पांचवाँ विशुद्धि-केन्द्र पर, चौथा आनंद केन्द्र पर, तीसरा तैजस-केन्द्र पर, दूसरा स्वास्थ्य केन्द्र पर और पहला शक्ति केन्द्र पर प्रथम आरोह क्रम की तरह बोलें, रूकें और अनुचिंतन करें। तीसरा आवर्त क्रम
तीसरे आवर्त क्रम में साढ़े तीन आवर्त होंगे। आवर्त निम्न प्रकार से रहेगा
प्रथम आवर्त में दूसरा पद्य जिसमें प्रथम सात तीर्थंकरों के नाम बोलते समय एक-एक केन्द्र पर एक-एक तीर्थंकर का नाम स्मरण करें, जैसे
उसभ - शक्ति केन्द्र पर मजियं च वंदे - स्वास्थ्य केन्द्र पर संभव - तैजस-केन्द्र पर मभिनंदणं च वंदे - आनंद-केन्द्र पर सुमइं च - विशुद्धि-केन्द्र पर पउमप्पहं - दर्शन-केन्द्र पर
- ज्ञान-केन्द्र पर बोलें।
सुपासं
१०८ / लोगस्स-एक साधना-१