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का स्फोट होता है परिणाम स्वरूप मिथ्यात्व में अंधकारमय कृष्णवर्णीय कर्म परमाणु छिन्न-भिन्न होकर निर्जरित होते हैं, तत्पश्चात वे आत्म-प्रदेशों से पृथक हो जाते हैं और यही वह क्षण होता है जब सम्यक्त्व के महाप्रकाश से आत्मा ज्योतिर्मान हो उठता है।
इसी तथ्य को वैज्ञानिक उद्धरण से आसानी पूर्वक स्वीकार किया जा सकता है। जैसे पृथ्वी के तीन-चौथाई भाग को घेरे रहने वाला जल दो तत्त्वों-हाइड्रोजन
और ऑक्सीजन का यौगिक है। यौगिकों में तत्त्व सदैव एक निश्चित अनुपात में मिलते हैं। यौगिकों में अपने अलग ही गुण धर्म होते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, जल के लाभ हैं। इन्हीं लाभों में से एक लाभ यह है कि वह आग को बुझा सकता है। लेकिन जल को बनाने वाले दो तत्त्वों में से हाइड्रोजन एक ऐसी गैस है जो ज्वलनशील है और साथ वाली ऑक्सीजन गैस आग को उत्तेजित करती है। परन्तु जब दोनों गैसों का एक निश्चित अनुपात में मिश्रण होता है तो पानी का रूप बन जाती हैं और आग को भड़काने के बजाय बुझाने का काम करती हैं।
जल का एक अणु हाइड्रोजन के दो परमाणुओं और ऑक्सीजन के एक परमाणु से मिलकर बना होता है। एक अणु कितना छोटा होता है, उसकी कुछ कुछ कल्पना भी की जा सकती है। जैसे कि वर्षा की एक बूंद में अणुओं की लगभग उतनी ही संख्या होती है जितनी की भूमध्य सागर में जल की बूंदों की संख्या।
अतः स्पष्ट है कि प्रभावशाली शब्द ध्वनि तरंगों के स्फोट एवं विशुद्ध भावों की एकाग्रता से जो प्रकाश विकीर्ण होता है, जो अनिर्वचनीय आनंदानुभूति होती है, वह शब्दों में नहीं बांधी जा सकती केवल अनुभव गम्य ही होती है। ऐसा आनंद जिस आत्मा को एक क्षण भी प्राप्त हो गया तो समझ लेना चाहिए उसने मोक्ष महल की सीढ़ियों पर कदम रख दिया है। उसका मुक्ति रूपी महल का वज्र कपाट खुल गया है। लोगस्स एक दिव्य साधना
___लोगस्स एक दिव्य साधना है। विशिष्ट एकाग्रता और साधना के उत्कर्ष की दृष्टि से इसके पूरे पाठ की तथा इसमें से निस्सृत कई अन्य मंत्रों की अनेक जप विधियां, ध्यान विधियां, अध्यात्म विधियां उपलब्ध हैं जो अपने भीतर छिपे अनेकों रहस्यों को आवृत्त करने की अद्भूत क्षमता रखती हैं। चैतन्य जागरण की दृष्टि से लोगस्स को एक दिव्य साधना के रूप में अनुभूत किया जा सकता है। एक प्रयोग विधि जिसको निम्न प्रकार से चैतन्य-केन्द्रों पर करने से चैतन्य-केन्द्र जागृत होने लगते हैं।
लोगस्स के संदर्भ में ध्वनि की वैज्ञानिकता / १०७