________________
६. लोगस्स के संदर्भ में ध्वनि की वैज्ञानिकता
भावना संपृक्त ध्वनि तरंगें आध्यात्मिक शक्ति और अत्यन्त तीव्र गति से लोगस्स पर केन्द्रित होकर प्रकंपन करने लगती हैं। उससे ऊर्जा का स्फोट होता है। परिणाम स्वरूप मिथ्यात्व के अंधकारमय कृष्णवर्णीय कर्म परमाणु छिन्न-भिन्न होकर निर्जरित हो जाते हैं तत्पश्चात् वे आत्म-प्रदेशों से पृथक हो जाते हैं और यही वह क्षण होता है जब सम्यक्त्व के महाप्रकाश से आत्मा ज्योतिर्मान हो उठता है।
लोगस्स के संदर्भ में ध्वनि की वैज्ञानिकता को समझने से पूर्व शब्द क्या है? शब्द कितने प्रकार का होता है? शब्द की उत्पत्ति के स्थान कौन-कौन से हैं? शब्द की उपयोगिता क्या है? शब्द के विषय में जैन दर्शन का क्या मन्तव्य है? आदि तथ्यों को समझना अत्यन्त अपेक्षित है। इन तथ्यों को समझने के बाद शब्द ध्वनि की वैज्ञानिकता तथा उसका मंत्राक्षर के रूप में शक्तिशाली प्रकंपनों के निर्माण की प्रक्रिया का रूप स्वतः सिद्ध हो जाता है।
__ एक स्कन्ध के साथ दूसरे स्कन्ध के टकराने से जो ध्वनि होती है, वह शब्द है। पुद्गल से उत्पन्न होने के कारण ध्वनि पौद्गलिक है। जैन दर्शनानुसार शब्द पुद्गल द्रव्य की एक पर्याय है। ध्वनि विज्ञान के संदर्भ में पुद्गल का शब्द अधिक महत्त्वपूर्ण है। शब्द में ध्वनि, भाषा आदि भी गर्भित है। शब्द के प्रकार
आगमों में तीन प्रकार के शब्द (ध्वनि) विवर्णित हैं'१. जीव शब्द २. अजीव शब्द ३. मिश्र शब्द
१. जीव शब्द-हृदय, कंठ, सिर, जिह्वामूल, दांत, नासिका, होठ और तालू-ये आठ स्थान हैं जहां से शब्द की उत्पत्ति होती है। इन आठ स्थानों का सीधा संबंध
लोगस्स के संदर्भ में ध्वनि की वैज्ञानिकता / १०३